शैक्षिक मंथन संस्थान द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर संगोष्ठी का आयोजन
जयपुर, 31 जुलाई। शैक्षिक मंथन संस्थान द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया एवं इस अवसर पर संस्थान के शुभंकर का लोकार्पण भी हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में अपने उद्बोधन में संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर जेपी सिंघल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए कहा कि पांचवी कक्षा तक अनिवार्य रूप से मातृभाषा में शिक्षा देने तथा यथासंभव आठवीं और उसके पश्चात उच्च शिक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा देने को बढ़ावा देने का प्रावधान स्वागत योग्य कदम है।
शिक्षा नीति में बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान देना उचित है क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से मस्तिष्क के बड़े अंश का विकास 6 वर्ष की उम्र तक हो जाता है। शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच के लिए जन्म, पृष्ठभूमि और लिंग पर भेद ना करते हुए समान अवसर उपलब्ध करवाना व्यक्ति और समाज के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसे शिक्षा नीति में ठीक प्रकार उठाया गया है। शिक्षा को अलग-अलग खंडों में बांट कर देखना उचित नहीं है। प्रसन्नता का विषय है कि शिक्षा नीति कला, विज्ञान, शैक्षणिक, सहशैक्षणिक, अकादमिक और व्यवसायिक शिक्षा में विभेद समाप्त करने का प्रावधान किया गया है। पारदर्शी आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की व्यवस्था, शिक्षकों की गरिमा को पुनः बहाल करने तथा शैक्षिक प्रशासन में भागीदारी की व्यवस्था सराहनीय है।
संगठन मंत्री महेंद्र कपूर ने बताया कि शिक्षा नीति में भारतीय जीवन मूल्यों, परंपराओं और भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर पाठ्यक्रम में इनका समावेश एक समर्थ, गौरवशाली और आत्मनिर्भर भारत बनाने में निश्चय ही प्रमुख भूमिका निभाएगा। नीति में उल्लेखित स्नातक स्तर पर समग्र एवं बहुविषयक शिक्षा देना बहुत आवश्यक है ताकि विद्यार्थी का केवल मानसिक ही नहीं वरन शारीरिक, आत्मिक और नैतिक विकास भी हो। शिक्षा नीति में की गई इस व्यवस्था के दूरगामी सकारात्मक प्रभाव होंगे ।
शैक्षिक मंथन पत्रिका के संपादक डॉ. राजेंद्र शर्मा ने कहा कि नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की व्यवस्था सभी क्षेत्रों में शोध को बेहतर ढंग से प्रोत्साहित कर पाएगी।
नई शिक्षा नीति में शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं, आशा है इनके आधार पर प्रभावी ढंग से शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोका जा सकेगा। शिक्षा के वित्तपोषण और नीति के कार्यान्वयन को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। महासंघ का मानना है कि इस पर राज्य एवं केंद्र सरकारों को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर शैक्षिक मंथन पत्रिका के सहसंपादक भरत शर्मा, संपादक मंडल के सदस्य शिवचरण कौशिक, ओमप्रकाश पारीक एवं दीपक शर्मा, डॉ योगेश गुप्ता, नवरंग सहाय, आलोक चतुर्वेदी आदि विद्वानों ने भी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।