शंखनाद (पुस्तक समीक्षा)
लंबे समय बाद एक अच्छा कहानी संग्रह पढ़ने का अवसर मिला। काफी समय से व्यस्तताएं इतनी हावी रहीं कि कुछ अच्छा पढ़ नहीं पाया था। अभी कुछ दिनों में देवेश अलख का शंखनाद कहानी संग्रह पढ़ा। इस संग्रह में कुल 14 कहानियाँ हैं। देवेश अलख जी का यह पहला कहानी संग्रह है, जो नोशन प्रेस से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की सभी कहानियाँ आधुनिकता और यथार्थ को कहती हुई आगे बढ़ती चली जाते हैं। इस संग्रह में ऊंची जगह, एक वह भी दिवाली थी, सोलह बरस की बाली उमर को सलाम, शंखनाद, अम्मा जी, सिगरेट का डिब्बा, आची, कपूर साहब, अनुशासन, समझौता, कौन सी …?, गौरैया, गुवाहाटी तथा हांडी कुल 14 कहानियाँ हैं। ऊंची जगह कहानी जहाँ समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था पर व्यंग करती है वहीं समरसता मूलक समाज की सोच को आगे बढ़ाने का प्रयास है। कहानी सहज भाव से अपने उद्देश्य तक पहुँच जाती है। एक वह भी दिवाली थी, कहानी आधुनिक जीवन में आ रहे बदलाव को दिखाती हुई उन भावनात्मक रिश्तों को आँखों के सामने टूटने की चुभन को पाठक तक पहुँचा देती है। आधुनिक जीवन शैली किस तरह व्यक्ति को प्रैक्टिकल बनाती जा रही है कि अब उसमें भावनाओं के लिए न तो जगह है और न ही उसके पास समय है, संबंधों को चोट पहुँचना अब कोई बड़ी बात नहीं रह गया है। इन भावों को एक वह भी दिवाली थी कहानी हमारे सामने रखती है। सोलह बरस की बाली उमर को सलाम कहानी, कहानी कला की दृष्टि से बड़ी ही सुंदर बन पड़ी है दो तरह के प्रश्नों को वर्तमान और भूत का मिश्रण करते हुए उन यादों को जगाते हुए लेखक सामने रख देता है जो कहीं ना कहीं हर प्रेम करने वाले व्यक्ति के जीवन में आए होते हैं । किस तरह पुरानी यादें वर्तमान के पटल पर घूम जाती हैं, यह कहानी वही सहज अभिव्यक्ति के साथ कह जाती है। इस संग्रह की सबसे अच्छी कहानियों में से एक शंखनाद है। कहानी कला का श्रेष्ठ रूप इसमें दिखाई देता है। कथानक जाना पहचाना होकर भी बड़ी रोचककता पैदा करता है। राजनीति और भावनाएं किस तरह एक दूसरे के विपरीत चलती हैं कैसे व्यक्ति इतना महत्वाकांक्षी हो जाता है कि वह अपने और अपनों की भावनाओं पर भी खेल जाता है। यह कहानी इन्हीं पहलुओं को हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है। अम्मा जी और कपूर साहब ये दो कहानियाँ आधुनिक युग में बदलते परिवेश, पीढ़ियों के अंतर, आधुनिकता का प्रभाव और बुजुर्ग मन की मनःस्थिति को हमारे सामने रखती हैं। आज के युग में किस तरह बुजुर्ग एकाकीपन की पीड़ा को झेलने के लिये मजबूर हैं। ये दोनों कहानियाँ आज की पीढ़ी को कुछ संदेश देना चाहती हैं, जो निश्चय ही युवा पाठक तक पहुँचेगा। सिगरेट का डिब्बा उच्चव आभिजात्य वर्ग की मनः स्थिति की कहानी है यह कहानी अपने रचनात्मक दृष्टिकोण से सही हो सकती है पर पता नहीं मुझे उतना प्रभावित नहीं कर पाई। आची और गौरैया ये दो कहानियां बाल मन को और बाल मन के सहज भावों को हमारे सामने रखती हैं। दोनों ही बड़ी अच्छी प्रभाव छोड़ने वाली कहानी हैं। आज की अंधाधुंध भागदौड़ में व्यक्ति संवेदनाओं को कितना पीछे छोड़ देता है, कि उसके पास आची जैसी मासूम के लिये भी समय कम पड़ जाता है, आधुनिक जीवन शैली ही इस तरह की हो गई है कि अब यहां भावनाओं को स्थान नहीं मिलता इस तरह के कड़वे यथार्थ को आची कहानी हमारी आंखों के सामने खोल देती है। जबकि गौरैया बालमन के साथ-साथ बच्चों में सहज भाव से पनपने वाली प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता को प्रकट करती है। गौरैया कहानी कुछ यथार्थ से आदर्श की तरफ भी जाती हुई दिखाई पड़ती है। अनुशासन कहानी सरकारी महकमे में पनपते भ्रष्टाचार को दिखाती है साथी ही युवा पीढ़ी के अनुशासन को भी। समझौता एक और बहुत ही अच्छी वजनदार कहानी है। आज के जीवन में बढ़ती दूरियां किस तरह, किसी के नजदीक पहुंचा देती हैं इस भाव को बिल्कुल वास्तविकता के साथ हमारे सामने रख देने वाली कहानी है। कामकाजी व्यस्तता के बीच में व्यक्ति कितना एकाकी हो जाता है कि उसे कब किसके सहारे की जरूरत पड़ जाती है कब नजदीकियाँ बन जाती हैं और किसी की नजदीकियाँ कब समझौता बन जाती हैं समझौता कहानी बड़े सहज तरीके से पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती है। कौन सी ..? कहानी बाबूशाही और उसके दुष्परिणामों की तरफ ध्यान आकृष्ट करती है। गुवाहाटी कहानी आज के आधुनिक जीवन शैली की एक बड़ी ही सहज अभिव्यक्ति है वर्तमान में किस तरह कामकाजी पेशेवर कब एक-दूसरे के नजदीक आ जाते हैं और कब दूर हो जाते हैं संबंधों का ताना-बाना कहां खत्म हो जाता है पता ही नहीं चलता। गोवहाटी कहानी इसी भाव को लेकर लिखी गई है। हांडी कहानी छोटे-छोटे निहित स्वार्थों पर मनुष्य किस तरह अपने आपको समर्पित कर देता है इस कथानक को लेकर चलती है। सभी कहानी अपने कथानक के साथ पूरा न्याय करती नजर आती हैं।
डॉ. चन्द्र प्रकाश शर्मा