फिल्म समीक्षा- शिकारा: ऐतिहासिक असत्य का विकृत पुलिंदा

7 फरवरी 2020 को प्रदर्शित हुई फ़िल्म शिकारा 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए घोर अन्याय का अनुचित और असत्यपूर्ण चित्रण है। निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने एक विशेष समुदाय का तुष्टीकरण करने हेतु कश्मीरी हिंदूओं साथ हुई अमानवीय हिंसा व उनके पलायन को एक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष रूप दे दिया है।

आतंकवादी लतीफ़ तथा कश्मीरी हिन्दू, फ़िल्म के नायक के संबंधों को मित्रतापूर्ण दिखाना षड्यंत्रपूर्ण योजना है। निर्माता ने दावा किया है कि यह एक वास्तविक कश्मीरी हिन्दू युगल की प्रेमकथा है, परंतु युगल की भूमिका निभाने वाले दोनों कलाकार मुस्लिम समुदाय से हैं। यह भी षड्यंत्र का हिस्सा है। घाटी में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ने के कारण कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ना पड़ा, बस इतना ही हुआ था कश्मीरी हिंदुओं के साथ? हिंसा के वास्तविक, वीभत्स, घिनौने रूप पर पर्दा डाल दिया गया है। इस फ़िल्म में वास्तविक तथ्यों को प्रेमकथा में बदलकर कश्मीरी पंडितों के साथ हुए घोर अत्याचार को योजनाबद्ध तरीके से एक रूमानी रूप देने का सिनेमाई खेल खेला गया है। सेना की हिरासत लाये गए आतंकी को नायक के समकक्ष चित्रित किया गया है, मानो वह अपने हिंसा के रास्ते पर किसी सही निमित्त से हो। नायिका का ताज़महल के प्रति असीम लगाव ताज़महल के काले इतिहास को उजला बनाने का ‘धर्मनिरपेक्ष’ प्रयास है। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में यह फ़िल्म तथाकथित “गंगा-ज़मुनी तहज़ीब” के झूठे मिथक को फिर से स्थापित करने की सिनेमाई कला का एक कुत्सित प्रयास है, जो दशकों से भारतीय सिनेमा संसार में चला आ रहा है।

डॉ. अरुण सिंह
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।

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5 thoughts on “फिल्म समीक्षा- शिकारा: ऐतिहासिक असत्य का विकृत पुलिंदा

  1. श्रीमान डॉ अरुण सिंह जी आपने बहुत ही बढ़िया तरह से ये बताया है कि आजकल की फिल्मों में कैसे तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके एक समुदाय विशेष को नायक की तरह प्रस्तुत किया जाता है आपका फ़िल्म समीक्षा का वर्णन संक्षिप्त रूप में ही आजकल की फ़िल्म इंडस्ट्री की कुत्सित मानसिकता को अच्छी तरह से बयान करता है आपने गागर में सागर भरा है कृपया ऐसे ही हमारा मार्गदर्शन करते रहे ।
    धन्यवाद

  2. Really the director tried to hide the real brutality against kashmiri pandits

  3. श्री अरुण सिंह जी,सर्वप्रथम तो आप के साहस और स्पष्ट सोच को नमन । आज के इस दौर मे जहां कुछ राष्ट्र विरोधी झुंड के लोगो को नई सोच और एक सेक्युलर (खोखले) भारत का नायक बनाने का प्रयास किया जा रहा है और हमारी युवा पीढ़ी को हर संभव तरीके से पथ वंचित करने की योजनाबद्व कोशिश जारी है।
    आप जैसे संकल्पी और स्पष्ट लेखनी के नायक हमारे सामाज और युवा पीढ़ी के लिए किसी संजीवनी से कम नही।

    शिकारा मूवी का आप का रिव्यु एक जी झटके मैं इस के पीछे छुपे एजेंडा और विकृत मानसिकता भारी सोच को समाज के शीशे के सामने नंगा कर देता है।।

    -संजीव पँवार

  4. Dear Arun , You have the freedom of speech being a part of the university while teachers like me can not raise our voice on any issue.This is a real hurdle else I would love to contribute to this cause. Being a strong votary of Indian culture,I have been making little efforts to aware the young minds.

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