बंगाल में न खाता न बही, ममता कहें वही सही

बंगाल में न खाता न बही, ममता कहें वही सही

डॉ. शुचि चौहान

बंगाल में न खाता न बही, ममता कहें वही सहीबंगाल में न खाता न बही, ममता कहें वही सही

बंगाल में न खाता न बही, ममता कहें वही सही, … और ममता की ममता ऐसी है कि उन्हें न तो महिलाओं की चीत्कार सुनायी दे रही है और न उनके आंसू दिखायी दे रहे हैं। बस दिख रहा है तो अपना मुस्लिम वोट बैंक। शाहजहॉं शेख के आतंक से त्रस्त संदेशखाली की महिलाएं प्रतिदिन अपनी आपबीती सुना रही हैं। बंगाल के बाकी हिस्सों में भी ये रोजमर्रा की बातें हैं। मालदा के मोथाबारी में एक युवती के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई। उसका नग्न, क्षत-विक्षत शव श्रीपुर गांव के एक मकई के खेत में पाया गया। लेकिन ममता प्रशासन की दृष्टि में बंगाल में सब सामान्य है। पुलिस कह रही है, मीडिया में भ्रामक समाचार फैलाए जा रहे हैं, हम ऐसे मीडिया के विरुद्ध एक्शन लेंगे।

पीड़ित महिलाओं को बोलने की सजा गिरफ्तारी के रूप में मिली है। कुल मिलाकर डर की राजनीति, जो अब बंगाल की पहचान बन चुकी है। 34 वर्षों के कम्युनिस्ट शासन की अराजकता और क्रूरता से लोग इतने त्रस्त थे कि बदलाव चाहते थे। मॉं, माटी और मानुष के नारे की भावुकता में वे बह गए और उन्होंने 2011 में ममता को सत्ता सौंप दी। तब किसे मालूम था कि कम्युनिस्ट जो सत्ता में रहने के लिए उद्योग धंधों को ही नष्ट कर रहे थे, ममता उनकी अस्मिता को भी रौंद देंगी।

बंगाल की राजनीति के पन्ने पलट कर देखेंगे तो समझ आएगा कि कम्युनिस्ट शासन हो या ममता शासन सबका राजनीतिक मॉडल एक ही है, उद्योग धंधे समाप्त करो और लोगों को सरकारी रेवड़ियों पर आश्रित कर दो। फिर सरकार अपने वोट बैंक को पोषित करे और बाकियों को प्रताड़ित। इससे या तो वे सरकार के खेमे में आ जाएं या चुप रहें। लेकिन जैसे जैसे बंगाल में मुस्लिम घुसपैठिए बढ़े, मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी, सरकार बनाने के लिए टीएमसी की हिन्दुओं पर निर्भरता भी कम होती गई तो यह फॉर्मूला भी बदल गया। अब वहॉं पर मुसलमान ही टीएमसी का पालनहार है, तो मुसलमानों को खुली छूट है कुछ भी करने की। जैसा कि संदेशखाली से संदेश आया, टीएमसी का ब्लॉक अध्यक्ष शाहजहॉं शेख जिसने रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाने और अन्य आपराधिक गतिविधियों से अकूत सम्पत्ति बना ली है, टीएमसी का सम्मानित नेता है। वह उन हिन्दुओं की बहन बेटियों को भी उठवा लेता है, जो टीएमसी के कार्यकर्ता हैं और उन्हें तब छोड़ता है जब उसका और उसके गिरोह का यौनाचार करके मन भर जाता है। लेकिन ममता दीदी की नजर में सब ठीक है। पीड़ित महिलाएं चीख चीखकर बयान दे रही हैं, लेकिन ममता प्रशासन की नजरों में वे झूठी हैं। रेप की शिकायत करने पर प्रशासन उनसे मेडीकल सर्टीफिकेट मांग रहा है, सिद्ध करो तुम्हारे साथ रेप हुआ है।

संदेशखाली में महिलाओं का शोषण

पुलिस ने बुधवार (14 फरवरी 2024) को कहा था कि उनके पास ऐसी कोई शिकायत नहीं है कि स्थानीय महिलाओं से रेप हुआ है।

संदेशखाली मामले में बंगाल पुलिस कह रही है, मीडिया में भ्रामक समाचार फैलाए जा रहे हैं, हम ऐसे मीडिया के विरुद्ध एक्शन लेंगे

बंगाल अशोकनगर के टीएमसी विधायक नारायण गोस्वामी ने एक इंटरव्यू में संदेशखाली की महिलाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा, संदेशखाली की जनजातीय महिलाओं को उनके डील-डौल, रंग-रूप से पहचाना जा सकता है। लेकिन जो महिलाएं कैमरे पर आकर आरोप लगा रही हैं वो गोरी हैं। क्या फिर भी हम उन्हें स्थानीय जनजातीय महिला कहेंगे।

ममता बनर्जी प्रदेश विधानसभा में शाहजहॉं शेख को लगभग क्लीन चिट देते हुए बयान दे रही हैं कि संदेशखाली में बाहर से आकर बीजेपी के कार्यकर्ता मास्क पहनकर बयान दे रहे हैं। उन्होंने शाहजहाँ शेख को टार्गेट बना रखा है। ED ने भी सबसे पहले उसे निशाने पर लिया और अब बीजेपी बाहर से लोगों को ला रही है। वह कह रही हैं, मैंने कभी अन्याय का समर्थन नहीं किया।

लेकिन बंगाल से जो समाचार आते हैं, उनसे तो लगता है वहॉं के लोग जैसे मध्यकालीन युग में जी रहे हैं। अपराधियों को शासन प्रशासन और सत्ताधारी दल का पूरा समर्थन और संरक्षण है। टीवी9 बांग्ला से बातचीत में संदेशखाली की एक महिला ने साफ साफ कहा कि बीडीओ और स्थानीय पुलिस के जवान टीएमसी के पार्टी काडर की तरह काम करते हैं। शह देने वालों में बशीरहाट के वर्तमान एसपी हुसैन मेहंदी रहमान जैसे अधिकारी तक का नाम आ रहा है। इनके विरुद्ध आवाज उठाने वालों के साथ क्रूरतम हिंसा की जाती है। अस्पताल में पीड़ितों का इलाज तक नहीं किया जाता। एफआईआर दर्ज होने का तो कोई चांस ही नहीं। हाल के मामले में ही किसी को संदेशखाली नहीं जाने दिया गया। पुलिस ने पूरे क्षेत्र की नाकाबंदी कर रखी है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और भाजपा की महिला कार्यकर्ताओं को भी घटनास्थल पर जाने नहीं दिया गया।

बंगाल में मुस्लिम तुष्टीकरण की स्थिति यह है कि सरकार ने मुसलमानों को मनमाना आरक्षण दे रखा है। यहॉं ओबीसी को ए (अति पिछड़ा वर्ग) और बी (पिछड़ा वर्ग) दो कैटेगरी में बांटा गया है। ए कैटेगरी में मुस्लिमों को सरकारी नौकरी में 91.5 प्रतिशत आरक्षण तो हिन्दुओं को सिर्फ 8.5 प्रतिशत आरक्षण ही दिया जा रहा है। वहीं, बी कैटेगरी में हिन्दुओं को 54 प्रतिशत और मुसलमानों को 45.9 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है।

उल्लेखनीय है कुछ समय पहले तक संदेशखाली में मुस्लिम जनसंख्या न के बराबर थी, लेकिन बांग्लादेशी मुसलमानों और रोहिंग्याओं की अवैध घुसपैठ के चलते यहॉं तेजी से जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ है। रही सही कसर आरक्षण, दबंगई और रिलीजियस कन्वर्जन ने पूरी कर दी है। अब देखना यह है कि क्या संदेशखाली की महिलाओं जैसा साहस और एकजुटता बंगाल के अन्य क्षेत्रों के लोग भी दिखाएंगे या ममता दीदी को पीड़ितों की चीत्कार सुनायी देगी?

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