सहकार भारती ने किया राष्ट्रीय मत्स्य अधिवेशन का आयोजन
सहकार भारती ने किया राष्ट्रीय मत्स्य अधिवेशन का आयोजन
मुंबई। नील क्रांति को साकार करने के लिए सहकार भारती – मत्स्य प्रकोष्ठ द्वारा 6 अक्तूबर को वाशी, नवी मुंबई के विष्णु दास भावे नाट्यगृह में “राष्ट्रीय मत्स्य अधिवेशन” आयोजित किया गया, जिसमें देशभर के 25 से राज्यों से मत्स्य व्यवसाय एवं मत्स्य सहकारी समिति से जुड़े 850 से अधिक प्रतिनिधि उपस्थित रहे। अधिवेशन का उद्घाटन केंद्रीय मत्स्य पालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, सहकार भारती के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. उदय जोशी, रशिया के मत्स्य व्यवसाय के प्रतिनिधि, महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष शशिताई अहिरे एवं महामंत्री विवेक जुगादे, राष्ट्रीय मत्स्य प्रकोष्ठ प्रमुख जयंतीभाई केवट एवं सह प्रमुख मंजूनाथ, फिशकोफेड के उपाध्यक्ष रामदास संधे की गरिमामय उपस्थिति में हुआ।
जयंतीभाई ने “राष्ट्रीय मत्स्य अधिवेशन” की प्रस्तावना रखी। पुरुषोत्तम रुपाला के करकमलों से मत्स्य गीत का लोकार्पण हुआ। डॉ. उदय ने सहकार भारती का भौगोलिक विस्तार के साथ अलग अलग सेक्टोरल विकास पर विचार रखे। पुरुषोत्तम रुपाला ने केंद्र सरकार द्वारा 40 हजार करोड़ से अधिक लागत से मत्स्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का विकास एवं प्रधानमंत्री मत्स्य योजना के तहत चल रहे कार्यों के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में “मछुआरा कार्य सम्मान” से सूरत के प्रदीप नाविक (ब्रिकिश वाटर में झींगा फार्मिंग और यूरोप में बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट) और रेस्क्यू स्पेशलिस्ट से परिचित कर्नाटक के नितिन गांवकर (42 सफल रेस्क्यू ऑपरेशन) को सम्मानित किया।
एनएफडीबी के मुख्य व्यवस्थापक डॉ. नरसिम्हा मूर्ति ने एनएफडीबी द्वारा चल रही योजना एवं मत्स्य क्षेत्र की आधारभूत सुविधा पर प्रजेंटेशन दिया। दापोली कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता डॉ. विवेक वर्तक ने इनलैंड एक्वाकल्चर पर विस्तृत में उद्बोधन दिया।
अगले सत्र में केंद्रीय खारा जलकृषि संस्थान (CIBA) के डॉ. रवि शंकर एवं डॉ. पंकज पाटिल ने बुनियादी और व्यावहारिक अनुसंधान के माध्यम से खारे पानी की जलीय कृषि के विकास के लिए उपयुक्त तकनीकी के बारे में जानकारी दी।
सफल अधिवेशन के लिए उपस्थित प्रतिनिधि ने व्यवस्था में कार्यरत नवी मुंबई के सभी कार्यकर्ताओं का परिचय एवं अभिनंदन किया। समारोप सत्र को राष्ट्रीय संगठन मंत्री संजय जी पाचपोर ने संबोधित किया। उन्होंने मत्स्य क्षेत्र की अद्वितीय क्षमता को पहचानते हुए सरकार पर ज्यादा निर्भर न रहकर, सहकारिता के माध्यम से सशक्त एवं समृद्ध मछुआरा समाज के उत्थान पर मार्गदर्शन किया।