जब 400 वर्षों की पुर्तगाली गुलामी से मुक्त हुआ गोवा
19 दिसम्बर गोवा मुक्ति दिवस
14 और 15 अगस्त, सन् 1947 की मध्य रात्रि को अपना देश अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्त होकर स्वतन्त्र हो गया और 15 अगस्त की प्रातःकाल की नई किरण देश में स्वतन्त्रता की खुशबू बिखरने लगी। परन्तु गोवा, दमन, द्वीप के नागरिकों की अंधेरी काली रात्रि अभी समाप्त नहीं हुई थी। शायद भारत माता अपने वीर सपूतों के धैर्य और पराक्रम की और भी परीक्षा लेना चाहती थी और देखना चाहती थी कि मेरे वीर सपूत स्वतन्त्रता प्राप्ति के आंनद में मग्न होकर अपना कर्तव्य भूल गए हैं अथवा उनके हृदय में मातृभूमि की अग्नि की प्रबलता उतनी ही तीव्र है। लेकिन माँ के वीर सपूत माता की अपेक्षा पर खरे उतरे और अन्ततः लम्बे संघर्ष के पश्चात 19 दिसम्बर 1961 को साढ़े चार सौ साल की पुर्तगाली गुलामी और अत्याचारों से गोवा (गोमांतक प्रदेश) को मुक्त करा लिया।
गोवावासियों पर अत्याचार आरम्भ
20 मई, सन् 1498 भारत के पश्चिमी तट महाराष्ट्र से सटे गोवा (गोमांतक प्रदेश) के लिए दुर्भाग्य का दिन था। इस दिन पुर्तगाल निवासी वास्कोडिगामा ने देश में समुद्री मार्ग से प्रवेश किया और कालीकट के जमोरिन (राजा) से केवल व्यापार करने की अनुमति मांगी थी। लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। उस क्षेत्र के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद जुलाई 1502 में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया, लेकिन व्यापारी के रूप में नहीं बल्कि एक समुद्री लुटेरे के रूप में। 25 नवम्बर 1551 को गोवा पर पुर्तगालियों का शासन स्थापित हो गया। गोवा की भूमि पर पुर्तगालियों का अधिकार गोमांतकवासियों की हत्या, अत्याचार-अनाचार की कहानी से परिपूर्ण रहा। स्वयं पुर्तगाली वायसराय डि. अबुलकर्क ने अपने शब्दों में कहा- ’’मैंने बस्ती में आग लगा दी, हर व्यक्ति को अपनी तलवार का शिकार बनाया, जो लोग जहाँ कहीं भी मिले मौत के घाट उतार दिया, पुरुषों की हत्या की और महिलाओं की अस्मत से खेला गया।” सन 1560 में पुर्तगालियों ने गोवा में हिन्दुओं की हत्या का नृशंस अभियान आरम्भ कर दिया।
संघर्ष का कालखण्ड
गोवावासियों ने कभी भी पुर्तगालियों के अत्याचारों को पूर्णरूप से सहन नहीं किया और शनै- शनै पुर्तगालियों के विरुद्ध मन में आक्रोश बढ़ता गया। सन् 1852, 1871, 1895 और उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ सन् 1901, 1912, 1917 में गोमांतकों ने पुर्तगालियों के विरुद्ध एक व्यापक जन आन्दोलन कर उनके छक्के छुड़ा दिए। पुर्तगालियों को अपना साम्राज्य बचाये रखने के लिए अंग्रेजों की सहायता लेनी पड़ी। जून 1946 में समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया गोवा गए, उनके आह्वान पर गोवावासियों ने एक प्रचण्ड आंदोलन खड़ा कर दिया। पुर्तगाल शासन ने 18 जून 1946 को डॉ. लोहिया को गिरफ्तार कर लिया और आजादी के इस आंदोलन को निर्ममता से कुचलना शुरू कर दिया। आंदोलन के नेताओं को 8 से 15 वर्ष के कठोर कारावास की सजा देकर उन्हें पुर्तगाल या अफ्रीकी उपनिवेशों में निर्वासित कर दिया गया।
सन् 1946 से 54 तक गोवा के अनेकों देशभक्त – जिनमें टी. बी. कुन्हा, पुरुषोत्तम काकोडकर, डा. राम हेगड़े, एंथोनी डिसूजा के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, को पुर्तगाल की अफ्रीकी बस्तियों में निर्वासित कर दिया। परन्तु लोगों के मन में आजादी की यह आग और तीव्र हो गई। 16 फरवरी 1954 को पुर्तगाली अधिकारों और उनके कुछ चाटुकार स्थानीय नागरिकों की एक मौज मस्ती पार्टी चल रही थी। तभी एक पुर्तगाली अफसर ने खड़े हो बडे़ ही रौब से बोलना शुरू किया ’’गोवा पुर्तगाल का अंग है’’। एक गहरा सन्नाटा छा गया तभी कोने में बैठा एक लम्बा, दुबला-पतला व्यक्ति जवांमर्द गोवा का प्रमुख सर्जन डा. पुंडलिक गायतोडे बिजली के वेग से उठा और उस सन्नाटे को चीरता हुआ दहाड़ा- ’’प्रोटेस्टो! बंद करो यह बकवास! अगले दिन ही डॉ. गायतोडे़ को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इसके विरोध में लोगों ने सत्याग्रह आरम्भ कर दिया। 1954 के अंत तक 3000 से अधिक सत्याग्रही जेल जा चुके थे और आंदोलन दिनों-दिन तीव्र से तीव्र होता गया।
संघर्ष का अंतिम दौर और गोवा मुक्ति दिवस
गोवावासियों के साथ-साथ देश के अन्य प्रदेशों के लोगों में गोवा मुक्ति के लिए बैचेनी बढ़ती गई। भारत सरकार की उदासीनता ने आमजन को इस आंदोलन के लिए प्रेरित किया। 1954 में गोमांतकों ने विश्वनाथ लाबेंदे के नेतृत्व में -’’आजाद गोमांतक दल’’ का गठन किया। इस दल ने 1954 में ही गुजरात स्थित दादरा एवं नगर हवेली नाम के 2 क्षेत्रों को पुर्तगालियों के चंगुल से मुक्त कराकर भारत में मिला दिया। जनता ने अखिल भारतीय स्तर पर एक सर्वदलीय समिति – ‘‘गोवा विमोचन समिति’’ का गठन किया । इस समिति ने 18 मई 1955 से गोवा को आजाद कराने का एक देश व्यापी आंदोलन आरम्भ किया। 18 मई को एन.जी.गोरे एवं वयोवृद्ध राष्ट्रकर्मी सेनापति बापट के नेतृत्व में प्रथम भारतीय जत्थे ने गोवा में प्रवेश किया। बाद में भारतीय जनसंघ के नेता जगन्नाथ राव जोशी, समाजवादी नेता मधु लिमये और शिरूभाऊ लिमये के नेतृत्व में सत्याग्रहीयों के जत्थों ने आना आरंभ कर दिया। 1 अगस्त तक भारत के अन्य भाग से 1200 से अभी अधिक सत्याग्रही गोवा पहुँच चुके थे। इनमें से अमीर चन्द थोरेट और साहा जैसे वीर सेनानियों को पुर्तगाली दरिंदों ने गोली से मार डाला।
15 अगस्त 1955 को सामूहिक सत्याग्रह के लिए पूरे देश की जनता को आह्वान हुआ। देश के हर हिस्से से हजारों नौजवान गोवा मुक्ति संग्राम में भाग के लिए निकल पडे़। हजारों सत्याग्रही बेलगाम में एकत्रित हो गए। महाराष्ट्र सरकार द्वारा ऐन वक्त पर ट्रकों द्वारा सत्याग्रहियों को लाने- ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस कारण गोवा विमुक्ति समिति के सामने संकट हो गया और सारी कोशिशों के बाबजूद बसों से केवल 4000 सत्याग्रहियों को गोवा की सीमा तक पहुँच सके।
15 अगस्त 1955 के इस गोवा मुक्ति संग्राम में राजस्थान, विशेषकर कोटा संभाग का भरपूर योगदान रहा। कोटा के नेता स्वामी माधोदास एवं हीरालाल जैन के नेतृत्व में 39 सत्याग्रहियों का एक दल नावों में तेरेखोल की खाड़ी पार करके 20 किलोमीटर पैदल चलकर गोवा में सत्याग्रह के लिए अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा। इनके अतिरिक्त इस दल में कोटा संभाग के प्रभुलाल विजय, आंनद लक्ष्मण खाण्डेकर, रतनलाल हिन्दुस्तानी, नन्दकिशोर, मोहनलाल जैन, डालचंद जैन, द्वारकालाल पानवाला, मोहनलाल चौबे, रामबाबू, प्रभुलाल गौड़, जगदीश चन्द शर्मा, लक्ष्मीनारायण दहिया, छोटेलाल वर्मा, मोहम्मद रफीक, भंवरलाल, राम कल्याण, बाबूलाल अग्रवाल, धन्नालाल, ज्ञान चंद, मोहन लाल पटवा, राधेश्याम, घनश्याम, किशनलाल, जमील अहमद, चौथमल, रघुवर दयाल, छीतरलाल, प्रताप नारायण तिवारी शामिल थे। गोली लगने से कोटा रामगंज मण्डी के मजदूर नेता पन्नालाल यादव मौके पर ही बलिदान हो गए। यदि विदेशी पत्रकारों का एक दल उसी क्षण उस स्थान पर नहीं पहुँचा होता तो अनेकों सत्याग्रही और बलिदान हो जाते। इस दल के कार्यकलाप की देश-विदेश में भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। अमेरिकी पत्रकार और शांतिवादी नेता डॉ. होमर जैक ने कहा- मैं जब कभी भी भारत आऊँगा, तो गोवा भी अवश्य जाऊँगा। पन्नालाल यादव के बलिदान और जिस प्रकार मुक्त होकर, दृढ़ विश्वास और इतनी आश्चर्यजनक शांति से उनके साथी प्राचीन हिंदू मंदिर के फर्श पर शव के चारों ओर बैठे थे, मैं कभी नहीं भूल सकता’’। भारत सरकार पुर्तगाली सरकार के वहशीपन से घबरा गई और तुरन्त गोवा की सीमा को सील कर अगले दिन गोवा में प्रवेश निषेध कर दिया। स्थानीय स्तर पर आंदोलन चलता रहा। देश की जनता का सरकार पर दबाव निरंतर बढ़ता रहा। अंततः 19 दिसम्बर 1961 को भारत सरकार ने सैनिक कार्यवाही कर गोमांतक प्रदेश को पुर्तगालियों से मुक्त कराकर भारतवर्ष में शामिल कर लिया। इस प्रकार साढे़ चार सौ वर्षों के अत्याचार से गोमांतकवासियों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।