सेवा, त्याग, समर्पण व बलिदान का दूसरा नाम है घुमन्तु : दुर्गादास

सेवा, त्याग, समर्पण व बलिदान का दूसरा नाम है घुमन्तु : दुर्गादास

सेवा, त्याग, समर्पण व बलिदान का दूसरा नाम है घुमन्तु : दुर्गादास

जयपुर, 27 मार्च। सेवा, त्याग, समर्पण व बलिदान का दूसरा नाम घुमन्तु है। रेनके आयोग के अनुसार देश भर में लगभग 1500 जातियों व उपजातियों में अनुमानतः 15 करोड़ के लगभग घुमन्तु, अर्धघुमन्तु व विमुक्त समुदाय के लोग हैं।  घुमन्तु समुदाय स्वयं के लिए घुमन्तु नहीं हुआ अपितु समाज की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए घुमन्तु बना। ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक दुर्गादास ने अपने संबोधन में कहे। वे राजस्थान विश्वविद्यालय में घुमन्तु समुदाय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने बंजारा समुदाय के नेपथ्य नायक लक्खी शाह बंजारा व अन्य महापुरुषों के जीवन दर्शन की चर्चा की। बंजारा समुदाय एक व्यापारिक समुदाय है, जिसने ना केवल देश अपितु देश के बाहर के अन्य देशों में भी व्यापार किया। दिल्ली में जी टी रोड निर्माण में भी बंजारा समुदाय का योगदान रहा है।

उद्धघाटन सत्र में मुख्य वक्ता डॉ. बलवान ने घुमन्तु समुदाय के सदस्य के रूप में अपने जीवन के अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि आज भी घुमन्तु समुदाय अपने अस्तित्व की पहचान की लड़ाई लड़ रहा है। आज भी घुमन्तु समुदाय की बहुत बड़ी संख्या ऐसी है जिनके पास पहचान का कोई भी सरकारी प्रपत्र नहीं है।

डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ लांग लर्निंग, राजस्थान विश्वविद्यालय व घुमन्तु जाति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्त्वाधान में “बंजारा : मुख्यधारा की तलाश में घुमन्तु समुदाय” विषय पर राजस्थान विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन चल रहा है।

आयोजकों ने बताया की यह संगोष्ठी स्वाधीनता के अमृत महोत्सव व राजस्थान विश्वविद्यालय के 76 वें स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित की गई है। इस दो दिवसीय संगोष्ठी का रविवार को पहला दिन था। संगोष्ठी सोमवार को भी जारी रहेगी।

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