जनजाति सुरक्षा मंच की एक सूत्री मांग, कन्वर्जन करने वाले हों समाज से बाहर
जनजाति सुरक्षा मंच की एक सूत्री मांग, कन्वर्जन करने वाले हों समाज से बाहर
कल (रविवार, 24 अप्रैल) जनजाति सुरक्षा मंच का ज़िला सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें मुख्यवक्ता बंशीलाल कटारा ने कहा कि जनजाति समाज अनादि काल से धर्म की रक्षा करता आया है और हम भी धाम-धूनी-धर्म की ध्वजा को हमेशा आबाद और सुरक्षित रखेंगे। यह आंदोलन सड़क से संसद और सरपंच से सांसद तक का अभियान है। जनजाति समाज इस देश की संस्कृति और सभ्यता का सेवक है।
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान न्याय और कल्याण के लिए कई प्रावधान करता है। इस क्रम में संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में क्रमश: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अखिल भारतीय एवं राज्यवार, आरक्षण एवं संरक्षण प्रदान करने हेतु राष्ट्रपति द्वारा सूची जारी करने का प्रावधान है। ऐसी सूचियां सन 1950 में जारी हुई थीं। ये सूचियां जारी होने के आधार पर ही संविधान के अनुसार SC/ST वर्गों के लिए हितकारी प्रावधान, सरकारों द्वारा लागू किए जाते हैं।
लेकिन जब महामहिम राष्ट्रपति ने अनसूचित जनजाति की सूची जारी की तब, कन्वर्टेड ईसाइयों एवं मुसलमानों को सूची से बाहर नहीं किया, बल्कि उन्हें ST में ही सम्मिलित रखा गया। मूल रूप से यह एक भारी विसंगति है, एवं संविधान के कल्याणकारी/ न्यायकारी उद्देश्य के विपरीत, मूल संस्कृति वाले बहुसंख्यक अनुसूचित जनजाति समाज के लिए उचित नहीं है।
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि कन्वर्जन के उपरांत जनजाति सदस्य indian Christian कहलाते हैं, जो कि कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार कन्वर्टेड ईसाई और मुसलमान (जनजाति व अल्पसंख्यक के नाम पर) दोहरी सुविधाएं ले रहे हैं।
सन 1968 में पूर्व सांसद डॉ. कार्तिक उरांव ने इस संवैधानिक/ कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए थे व विषय पर गहरा अध्ययन भी किया था। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि 5% कन्वर्टेड ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल ST की 62% से अधिक नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक पाया गया। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से कन्वर्टेड लोगों को ST की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश मे संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना आवश्यक है। इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदों का समर्थन भी प्राप्त हुआ था।
यह उल्लेखनीय है कि ST की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति आवश्यक है। यहां विशिष्ट प्रकार की संस्कृति का आशय पूजा पद्धति से है। सनातन संस्कृति ही जनजाति संस्कृति का सार है। इसी आधार पर कन्वर्टेड ईसाइयों व मुसलमानों को सूची में संशोधन कर सूची से बाहर करने की मांग की जाती रही है। परंतु सन 1970 के दशक में इस हेतु विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई। यह एक दुःखद अध्याय है। सन 2000 की जनगणना और 2009 का डॉ. जे के बजाज का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करता है। कन्वर्टेड ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों की अधिकांश सुविधाओं को लगातार हड़प रहे हैं। लगातार मांग करते रहने के बावजूद कोई सुनवाई न होने पर जनजाति समाज की मांगों को मजबूत तरीके से रखने के लिए सन 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन किया गया। मंच ने कन्वर्टेड ईसाइयों एवं मुसलमानों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के लिए एक सूत्री अभियान छेड़ा और इन प्रयासों के अंतर्गत सन 2009 में राष्ट्रपति को 28 लाख हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन दिया। सन 2020 में डॉ. कार्तिक उरांव के जन्म दिवस, 29 अक्टूबर के अवसर पर व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया गया, जिसमें 288 जिलों में जिला कलेक्टर/संभागीय आयुक्तों के माध्यम से, 14 विभिन्न राज्यों के राज्यपालों व 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलकर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपे गए जिनमें फिर उपर्युक्त विषय का निवेदन किया गया।
मंच ने अब तक के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा एवं मंथन के उपरांत, पुन: एक देशव्यापी महाअभियान शुरू किया है, जो सड़क से संसद तक और सरपंच से सांसद तक संपर्क हेतु चल रहा है।
इस क्रम में गांवों में संपर्क कर, देशभर में जिला सम्मेलनों का भी आयोजन किया जा रहा है। विगत दिनों दिल्ली में जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने सांसद संपर्क महाअभियान चलाया, जिसमें 442 सांसदों से संपर्क कर De-listing का कानून बनाने का आग्रह किया गया।
मुख्यवक्ता कटारा ने कहा कि इस एक सूत्रीय अभियान को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच तब तक संघर्ष करेगा, जब तक कन्वर्टेड ईसाइयों और मुसलमानों को ST की पात्रता और परिभाषा से बाहर नहीं निकाल दिया जाता, और इस हेतु संसद द्वारा 1970 से लंबित कानून नहीं बना दिया जाता।
कार्यक्रम में विविध संगठनों के 2000 से अधिक कार्यकर्ता व गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि डॉक्टर नारायण निनामा थे तथा संत सानिध्य नरसिंहगिरि महाराज का रहा। आभार संयोजक बहादुरसिंह डामोर ने व्यक्त किया तथा संचालन डॉक्टर जोहनसिंह देवदा ने किया।