मेरी चुन्नी (कहानी)
रोहित प्रधान
“रितु भाभी! जल्दी आओ …देखो ….पता नहीं क्या हुआ है मेरी चुन्नी को ?…” यह कहते हुए बेसुध सी सरज़ू, रितु भाभी के घर के बरामदे में दौड़ती हुई पहुँची।
रितु भाभी आटे में सने हुए हाथ लिये, रसोई से बाहर बरामदे दौड़ आयी और बोली-
“क्या हो गया अचानक, सुबह तक तो सही थी?”
“मुझे नहीं पता क्या हुआ है? आप बस अभी के अभी चलो” सरज़ू हांफ़ते हुए बोली। तब तक रितु की देवरानी प्रिया भी शोर सुन वहाँ आ चुकी थी।
रितु भाभी को लगा मामला कुछ ज़्यादा गंभीर है तो, उन्होंने प्रिया से कहा-
“प्रिया! रसोई सम्भालना मैं आई।”
अब दोनों दौड़ गईं।
दोनों ने जब चुन्नी को देखा तो हतप्रभ रह गईं।
चुन्नी के शरीर पर बहुत सी फुंसियां हो गई थीं, उनमें से कुछ में तो पानी भी निकल रहा था।
“भाभी! कल से ना कुछ खाती है, ना पीती है, भगवान जाने क्या हुआ है?” सरजू बोली।
दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था क्या करे, ऐसा रोग दोनों ने ही पहले कभी ना देखा था ।
सरज़ू बोली “कितनी छोटी बच्ची है अभी तो, एक साल की हुई है और मेरी आवाज़ पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं करती। दो दिन से जड़ हो रखी है।
पहले तो मुझे लगा था बुख़ार है, तो दवाई दे दी थी और रात को ठीक भी थी, पर आज तो देखो पता नहीं क्या हुआ है?
भाभी बच तो जाएगी ना मेरी चुन्नी? कहते कहते सरज़ू की आँखों से आँसू लुढ़क गया।”
“अरे पागल हो गई है क्या? रो क्यों रही है? बीमारियां हैं, हो जाती हैं, पुरषोत्तम जी को फ़ोन लगा।” रितु भाभी बोली।
सरज़ू ने पल्लू से आँसू पोछते हुए, फ़ोन लगा कर स्पीकर पर लिया, घण्टी गई फ़ोन उठा,
“हैलो डॉक्टर साहब, रितु बोल रही हूँ, हमारे घर में चुन्नी को पता नहीं क्या हुआ है, उसके पूरे शरीर पर फुंसियाँ हैं, कुछ में से तो पानी भी निकल रहा है, कुछ खा पी नहीं रही है, आज दूसरा दिन है।”
“आपके यहाँ भी पहुँच गया मतलब! “
कुछ देर रुककर डॉक्टर फिर बोले “भाभी लम्पी हुआ है आपकी चुन्नी को”
“लम्पी, ये क्या है डॉ. साहब? “ रितु भाभी ने पूछा।
मैं आता हूँ कुछ देर में सब बताता हूँ। आप अभी कुछ मत करो।”
सरज़ू बोली “कुछ मत करो मतलब?” इतने में डॉ. साहब ने फ़ोन रख दिया।
अब इस नाम “लम्पी” को लेकर चर्चा होने लगी कुछ ही घंटों में गाँव भर में बात फैल गई।
नये नये ज्ञान और सलाहें जहाँ फ़ोन करो, वहीं से कुछ नसीहत आ जाती। किसी ने तो यहाँ तक कहा – फैलने वाली बीमारी है, लोगों को भी हो सकती है। जानवर से दूर रहो।
शाम को डॉ. आया कुछ दवाई लिखी, कुछ मलहम लगाने को दी। बढ़िया बिल बनाया, बिना कुछ ज़्यादा बताये चला गया। अब वो भी क्या बताए, ज़ैसे कोरोना वैसा लम्पी।
चुन्नी थी भले ही एक साल की पर थी, पर थी तो प्यारी गाय। इतने बड़े शरीर पर मलहम लगाना और पट्टी करना बहुत मुश्किल काम था। बरसात के दिन थे तो और कठिन हो जाता था सब सरज़ू के लिए। वैसे उसका पति सुकेश काम पर जाने से पहले सहायता करवाता था। पर दिन भर ध्यान रखना कुछ बनाकर खिलाना, ऐसा जो चुन्नी को पसंद था, सरजू करती थी पर वो भी चुन्नी ठीक से ना खाती थी, तीन दिन हो गए चुन्नी खड़ी रही, एक पल ना बैठी, ना कुछ खाया।
सरजू को बहुत ग़ुस्सा आया वो चुन्नी पर बहुत चिल्लाई उसे डाँटा। पर आज उस पर कोई असर ना था, जो चुन्नी सरज़ू के बाड़े में आते ही झूमती थी। उसके आवाज़ देने पर “चुन्नी देख मम्मा आयी” ऐसा सुनकर अपने दोनों कान हिलाती थी, सरज़ू से खूब बाते करती थी, आज एक दम शांत और जड़ थी।
गाँव की महिलाओं के पास बात करने को होता क्या है या तो उगता धान या ये बेज़ुबान, पर दोनों से ही वे बातें कर लेती हैं। अपना दुःख सुख उनसे ही बाँट लिया करती हैं।
तीन दिन हो गये थे चुन्नी ना बैठती थी, ना कुछ खाती थी।
सरज़ू आज दूध वाली बोतल में दूध दलिया लायी थी, उसे लगा शायद पी ले, पर चुन्नी ऐसे भी नहीं पी रही थी। सरज़ू ने बहुत समझाया,
“देख चुन्नी मेरी अच्छी बच्ची है ना, नहीं पियेगी तो कैसे ठीक होगी। अच्छा पहले ये पी ले, फिर तू जब तक बोलेगी तुझे खोल दूँगी, तू खूब खेलना, बस एक बार पी ले।”
पर इन सब बातों का चुन्नी पर कोई असर नहीं था। चुन्नी की आँखों से बस आँसू निकलते थे।
सरजू ने उसे गोद में लेकर पिलाने की भी सोची, पर नहीं हो पाया, कैसे ले गोद में? चुन्नी अब बैठती भी तो नहीं थी। तीन दिन से लगातार खड़ी थी, बस रोती थी।
अब सरजू को पता नहीं क्या सूझा उसने फावड़ा लिया और चुन्नी की ओर मारने के लिए उठाया, पर चुन्नी ना हिली, बस जड़ बन खड़ी रही और सरजू ने वो फावड़ा ज़मीन पर दे मारा। सरजू ने रोते रोते पूरी आस पास की ज़मीन खोद दी। बरसात की वजह से कीचड़ हो गया था। सरज़ू ने मिट्टी का टीला बनाया और चुन्नी को गिराने का प्रयास किया, पर चुन्नी ना हिली, तो सरजू ने पूरा जोर लगाकर उसे गिरा दिया और चुन्नी धड़ाम से मिट्टी के ढेर पर गिर गई और फिर तुरंत ही सरज़ू ने चुन्नी को सम्भाला और उससे बोलने लगी,
“मेरी चुन्नी, मुझे कुछ और नहीं सूझा, मुझे माफ़ मत करना, पर तू ये पी ले, देख ये सीधे तेरे गले में जाये ऐसे जुगाड़ लायी हूँ, देख कितनी सुंदर बोतल है, पी ले ना, चुन्नी मम्मी से नाराज़ है, पर बेटा खाने से क्या दुश्मनी, पी ले चुन्नी बेटा…।”
कहते कहते उसने चुन्नी के सर को गोद में लिया और उसके मुँह में बोतल डालने की कोशिश की, लेकिन थोड़ी बाद देखा तो सब उसके आँचल में आ गया। मुँह के दूसरी तरफ़ से सब निकल गया था। जैसे चुन्नी का गला रुक गया हो। बस चुन्नी के मुंह से एक आवाज़ आयी-
“माँ”
सरज़ू की आँखों में आँसू आ गए, वो बहुत लाचार थी, असहाय थी, बहुत कुछ करना चाहती थी, पर कर नहीं पा रही थी। चुन्नी की हालत देख सरजू ने ऊपर आकाश की ओर देखा, आज एकादशी का दिन था।
और बोली
“भगवान इसे बुला ले, अब नहीं देखा जाता, मैं छ महीने तक एकादशी का व्रत रखूँगी।”
ये सब करते करते कब रात हो गई पता ही नहीं चला सारे काम पड़े थे, रोते रोते सब काम करती सरज़ू, रात को बिना किसी से बात किए, बिना कुछ खाए, सिर पर कपड़ा बांध सो गई। सुकेश ने कुछ भी कहना उचित ना समझा।
अगले दिन सरज़ू, सुबह जल्दी पाँच बजे ही बाड़े में चुन्नी को सँभालने पहुँची, देखा जैसे उसने चुन्नी को छोड़ा था वैसे ही थी।
चुन्नी के पास जाकर उसने जब उसे देखा चुन्नी का मुँह भी खुला था और आँखें भी, वो अब झपकती नहीं थीं। सरज़ू को समझते देर ना लगी, उसने बाडे से ही सुकेश को कॉल किया और कहा “बुला लो किसी को, चुन्नी अब नहीं रही।”
कुछ समय बाद कुछ लोग एक ट्रेक्टर लेकर चुन्नी को लेने आ गये। सुकेश, बच्चे, आस पास के लोग और स्वयं सरज़ू वहीं थी।
उन्होंने चुन्नी के पाँव बांधे और जैसे ही घसीटने का प्रयास किया,
सरज़ू चिल्लाई,
“क्या कर रहे हो यह, घसीटोगे इसे, शर्म नहीं आ रही, ऐसे लेकर जाते हैं किसी को, बिल्कुल अक्ल नहीं है तुममें..?”
“भाभी यह गाय मर चुकी है। हमें अपना काम करने दो ”
“गाय मर चुकी है मतलब?”
अब सरज़ू विकराल रूप धारण कर चुकी थी “मर चुकी है तो क्या? ऐसे तो गौ माता, गौ माता, बच्छ बारस को इसी को खिलाई थी दाल, भूल गए, आप ही आए थे ना?पिछले महीने आपके दादा जी गये थे ना, वो भी मर गए थे, ऐसे उठाया था उन्हें …?”
वो सरज़ू के ऐसे बर्ताव पर उत्तर देने ही वाला था कि
सुकेश ने आँखों से ही इशारा कर दिया और वो चुप रहा और रस्सी हाथ से छोड़ दी।
सुकेश संवेदनाएँ, भाव, वात्सल्य, प्रेम, पीड़ा सब देख रहा था।
सुकेश ने रस्सी खोली और उठाने लगा, बाक़ी सबने हाथ लगाया, उठाकर उसे ट्रॉली में लिटा दिया।
सरजू पता नहीं क्या क्या बड़बड़ा रही थी,
“जब कोरोना आया, लोग दिन भर आँकड़े दे रहे थे।
कोई ज्ञान दे रहा था,
कोई दवाई बना रहा था,
ऑक्सीजन की बातें हो रही थीं, यहाँ इतनी गौ माता मर गईं, है कोई आँकड़ा? देखा किसी ने? किसी को दर्द नहीं दिखता, जहॉं देखो बस चुनाव दिखते हैं।
हम तो गाँव वाले हैं, दुनिया तो शहरों ने बनाई है ना? आ जाएँगे सफ़ेद कपड़े पहन के।”
बोले जा रही थी बस, क्या ग़लत क्या सही, कुछ सूझता नहीं था उसको।
“कितना पैसा जाता है इलाज में? कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता जानवर जो है बेचारा? बताओ घसीट कर ले जा रहा था।अनपढ़ भले ही हों हम, पर हम पालना जानते हैं।” पता नहीं क्या क्या बोले जा रही थी वह। सुकेश उसके पास गया, उसे गले से लगा लिया और वो फूट फूट कर रो रही थी और बस एक ही बात बोले जा रही थी,
“ मेरी चुन्नी वापस ला दो, मेरी चुन्नी।”