डीलिस्टिंग : जनजातीय समाज के हितों की रक्षा आवश्यक
डॉ. सरोज कुमार
डीलिस्टिंग : जनजातीय समाज के हितों की रक्षा आवश्यक
भारत में जनजातीय संस्कृति अनन्य रूप से सनातनी है और इसलिए बहुत ही समृद्ध तथा अमिट है। हजारों साल के तुर्क अफगान मुगल और विलायती आक्रांताओं के लाख प्रयासों के बावजूद जनजातीय संस्कृति अक्षुण्ण है। भगवान बिरसा से लेकर पूज्य गोविंद गुरु तक की यात्रा दरअसल सनातनी जनजातीय अस्मिता की रक्षा की यात्रा रही है। दुर्भाग्य से कुछ समाज कंटकों और विभाजनकारी तत्वों के बहकावे में आ कर रिलीजियस कन्वर्जन हुए।
रिलीजियस कन्वर्जन सिर्फ उपासना पद्धति में बदलाव नहीं है, वरन यह संपूर्ण संस्कृति में बदलाव है। जनजातीय समाज अपनी युगों पुरानी संस्कृति को त्याग कर अपने पूर्वजों का अपमान करने वालों को जनजातीय समाज का हिस्सा नहीं मानता। संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 तक के अधिकारों का दुरुपयोग करके विधर्मियों ने जनजातीय समाज और संस्कृति को विखंडित करने का जो प्रयास किया, वह उन्हें सर्वथा ही अस्वीकार्य है। यथार्थ यह भी है कि कन्वर्ट हुए जनजातीय समाज के अल्प समूह ने आरक्षण तथा अन्य सुविधाओं पर एकाधिकार जमा कर बहुसंख्य जनजातीय समाज के अधिकारों का अतिक्रमण किया है, हनन किया है।
जब कन्वर्ट हो गए तो फिर जनजाति सुविधाओं का उपभोग करने की छूट क्यों?
अपनी पूजा पद्धति व आस्था बदल चुके जनजाति समाज के व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति वर्ग की श्रेणी से हटाया जाए, उन्हें शड्यूल्ड ट्राइब लिस्ट से डीलिस्ट किया जाए, ऐसी मांग पूर्व सांसद कार्तिक उरांव के समय से ही जनजातीय समाज एक स्वर में करता रहा है।
ऐसे सभी कन्वर्टेड शड्यूलेड ट्राइब के लोगों को ST की श्रेणी से हटाना संविधान सम्मत भी है और संविधान की पांचवीं तथा छठी अनुसूची की भावना के अनुरूप भी है। इससे सामान्य अनुसूचित जनजाति वर्ग के हितों की रक्षा हो सकेगी और साथ ही जनजातीय समाज कन्वर्जन के विदेशी कुचक्र से भी स्वयं की रक्षा कर सकेगा। इसलिए सरकार को जागना होगा, जनजातीय समाज के हितों की रक्षा करनी होगी, जनजातीय युवा वर्ग के आरक्षण के अधिकारों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकना होगा, डीलिस्टिंग की मांग माननी ही पड़ेगी।
नौ राज्यों में इस हेतु व्यापक जागरण रैलियां हो चुकी हैं, जनजातीय समाज की डीलिस्टिंग की मांग के साथ संपूर्ण राष्ट्र, सर्व समाज खड़ा है। डीलिस्टिंग में अब और देर नहीं।