वैश्विक आपदा और भारतीय राजधर्म

अमेरिका, ब्राजील को सहायता देकर भारत ने ना केवल अंतर्राष्ट्रीय मैत्री धर्म अपितु मानवता के धर्म का भी निर्वाह किया है। यह भारत के चिर परिचित वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को सिद्ध करता है। स्पष्ट है भारतीय राज्यशास्त्र का आधार मानव धर्म है जिसका साक्षी आज संपूर्ण विश्व हुआ है जो विजीगिशु भारत की शक्ति को पहचान चुका है।

प्रीति शर्मा

ब्राजील के राष्ट्रपति का कथन- जिस प्रकार रामायण में हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण की प्राण रक्षा की थी, उसी प्रकार भारत हमें हाइड्रोक्लोरोक्विन की आपूर्ति करे, भारत की वैश्विक पटल पर महत्वपूर्ण छवि को इंगित करता है। इस वैश्विक प्रतिभा में सम्मान के पीछे भारत की जीवनशैली एवं मानवता की रक्षा के प्रण का निर्वहन करना है।

विशेषत: वर्तमान में कोविड 19 जैसी वैश्विक महामारी के चलते भारत के चिर परिचित दानवीर भूमिका निभाने पर जो समस्त विश्व, भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के समक्ष नतमस्तक हुआ है, उसके पीछे प्राचीन भारतीय धर्म आधारित जीवन पद्धति मूलत: उत्तरदाई है। यहां धर्म से तात्पर्य कर्तव्य परायणता से है, जिसका उल्लेख भारत के प्राचीन ग्रंथों में स्पष्टत: किया गया है। इन्हीं ग्रंथों में से एक रामायण का उल्लेख ब्राजील के राष्ट्रपति ने किया। भारतीय जीवन पद्धति सदैव ही धर्म, दर्शन और अाध्यात्म पर टिकी रही है।

राजनीति शास्त्र के महान ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र का यदि उल्लेख किया जाए तो उसमें भी जीवन की विधाओं अनविक्षिकी, त्रई, वार्ता की सफलता दंड नीति में निहित है। यहां कौटिल्य के अनुसार दंड से आशय धर्म (कर्तव्य) से है और अर्थशास्त्र से आशय ‘मानव द्वारा बसी हुई भूमि का पालन करने वाला शास्त्र’ अर्थात राजधर्म से है और इस प्रयोजन हेतु धर्म में आस्थावान राजा धर्म दंड धारी की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। कोरोना वायरस जनित इस महामारी ने भारतीय राज्यशास्त्र की सफल भूमिका का प्रमाण दिया है। भारतीय जनता को इस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए समस्त राज्यों के एकजुट प्रयास, देश के गरीबों और निराश्रितों की आवश्यकता पूर्ति में संपूर्ण समाज का आगे आकर सहायता करना भारतीय धर्म पालन को इंगित करता है। जहां इस महामारी ने विश्व को अपनी सीमाओं को प्रतिबंधित करने पर विवश कर दिया वहीं भारत ने राष्ट्र की सीमाओं के भीतर और बाहर संतुलन स्थापित करते हुए मानव मात्र की सेवा के उद्देश्य से न केवल विकासशील एवं अल्प विकसित राष्ट्रों (सार्क) को आर्थिक सहायता का प्रस्ताव रखा बल्कि शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्रों को संकट की इस घड़ी में सहायता दी। ऐसा कौटिल्य द्वारा उल्लेखित विजिगिशु राष्ट्र अर्थात भारत द्वारा ही संभव है जो अपने राजधर्म का मानव मात्र की रक्षा, संकट से मुक्ति और विकास संबंधी अपने धर्म के पालन के लिए कटिबद्ध है।

अमेरिका, ब्राजील को सहायता देकर भारत ने ना केवल अंतर्राष्ट्रीय मैत्री धर्म अपितु मानवता के धर्म का भी निर्वाह किया है। यह भारत के चिर परिचित वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को सिद्ध करता है। स्पष्ट है भारतीय राज्यशास्त्र का आधार मानव धर्म है जिसका साक्षी आज संपूर्ण विश्व हुआ है जो विजीगिशु भारत की शक्ति को पहचान चुका है। यह न केवल वैश्विक शक्ति का भौगोलिक स्थानांतरण दर्शाता है बल्कि भारत की सार्क में बड़े भाई की भूमिका से आगे बढ़ते हुए समकक्ष तथा शक्तिशाली राष्ट्रों के समक्ष भारत की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की कुशलता का प्रमाण है।

आज पुन: आवश्यकता है, कि भारत के प्राचीन ग्रंथों में वर्णित राज्यशास्त्रीय कुशलताओं का गहन अध्ययन कर उनमें निहित मूल्यों का पुनर्स्थापन किया जाए तभी भारत को विश्व गुरु की अपनी प्राचीन छवि पुनः प्राप्त होगी।

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