जिसके पास परिवार और बच्चों के लिए समय न हो, उसके जीवन का क्या फायदा?
आजकल लोगों को भ्रांति है कि हमारे पास समय नहीं है, हम बहुत व्यस्त हैं, लेकिन ये सच नहीं है। हम अपने घर, ऑफिस, परिवार और यहां तक कि बच्चों को भी बोल देते हैं कि मैं बहुत व्यस्त हूं। मैं आपके लिए उपलब्ध नहीं हूं। यहां तक कि जब मैं किसी को थोड़े समय मेडिटेशन करने के लिए बोलती हूं तो यही जबाव मिलता है कि मैं बहुत व्यस्त हूं। इसका मतलब हुआ कि मैं स्वयं के लिए उपलब्ध नहीं हूं।
जिसका खुद से रिश्ता न हो, जिसके पास अपने परिवार और बच्चों के लिए समय न हो तो उसके जीवन का क्या फायदा? आखिर हम कर क्या रहे हैं, किस चीज में व्यस्त हैं, यह हम सभी के लिए अनसुलझा सवाल हैं। ये जो हम पूरे दिन में व्यस्त शब्द प्रयोग करते हैं वास्तव में हम क्या करने में व्यस्त हैं? तो जवाब मिलता है कमाई करने में। वह तो महत्वपूर्ण है, लेकिन हम कमाई अपने परिवार के लिए, अपने बच्चों के लिए, अपने भविष्य के लिए ही तो कर रहे हैं।
- एक दिन आप घर में सभी लोगों को बैठाएं और उनसे सीधा सा प्रश्न पूछे कि आपको मेरे साथ थोड़ा समय चाहिए या धन चाहिए? जिसके लिए हम दिन रात जागकर कमाई कर रहे हैं उनकी डिमांड तो पूछना चाहिए ना? उन्हें ज्यादा धन नहीं चाहिए, उन्हें तो सिर्फ आपका साथ चाहिए। बीस साल बाद पीछे मुड़कर आपको अपना ही बच्चा बोलेगा हमें जो चाहिए था वो तो आपने दिया नहीं। हम सारा दिन व्यस्त…व्यस्त बोल रहे हैं तो एनर्जी कौन सी पैदा हो रही है? फिर हम जितनी देर उनके साथ बैठेंगे भी तो उन्हें कौन-सी एनर्जी देंगे? आजकल तो साथ में मोबाइल भी है, पांच मिनट बैठेंगे तो उसमें कोई न कोई मैसेज आ ही जाता है, तो हमारे पास अपने परिवार के लिए कितना समय बचता है?
- यह हमें जांचने करने की आवश्यकता है। उनको जो चाहिए उनके पास वो सब कुछ पहले से है, इसकी कोई सीमा नहीं होती है कि आप उनको कितना दे सकते हैं। उनके पास पहले से एक गाड़ी है, अब उसके बाद कोई सीमा नहीं है कि आप उन्हें कितनी गाड़ियां दे सकते हैं। एक मकान है अब उसके बाद कोई अंत नहीं है कि आप महाबलेश्वर में एक और बनाए, लोनावाला में एक और बनाएं, वो तो आप बनाते रहेंगे। इसमें महत्वपूर्ण यह है कि हमने उनको वो नहीं दिया, जो उनको हमसे चाहिए था और जो हमें चाहिए था जीवन में, वो हमें कहां मिलेगा और कौन से बिजनेस में मिलेगा?
- इसका कोई नियम नहीं है कि सभी की डिमांड एक जैसी ही हो। हर एक की पर्सनैलिटी अलग, परिवार अलग, सोच अलग लेकिन एक मिनट रुककर हमें अपने आपसे पूछना होगा कि हमें क्या चाहिए और परिवार को क्या? मुझे भी सिर्फ साधन चाहिए और कुछ नहीं चाहिए तो ठीक है। लेकिन आवाज आती है कि साधन के साथ-साथ कुछ और चाहिए तो वो कुछ और लेकर आने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है। उनकी सिर्फ आधी जरूरतों को हम कैसे पूरा कर सकते हैं। ये भी सोचने का समय हमारे पास नहीं है। बिना रुके यह मशीन कब तक चलेगी?