क्या भारत हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा?
अमित कुमार ठाकुर
जब से 5 अगस्त 2020 के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में राममंदिर भूमिपूजन में भाग लिया है तब से गैर हिन्दुओं का एक वर्ग आशंका से ग्रसित और हिन्दुओं का एक वर्ग उत्साह और प्रसन्नता से अभिभूत हो रहा है कि बस अब एक कदम और! भारत हिन्दू राष्ट्र बनने ही वाला है। भारत की समस्त राजनीति हिन्दुमयी हो गई है। भाजपा तो भाजपा अन्य दल भी अपने को हिन्दुवादी प्रदर्शित करने में लगे हैं। दिल्ली के एक दल के नेता तो हनुमान भक्त हो गए हैं और सार्वजनिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और चुनाव जीतने पर सर्वप्रथम हनुमानजी के चरणों में जा कर लेटते हैं। देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टी गर्व पूर्वक कह रही है कि राममंदिर का ताला तो हमने ही खुलवाया था। केवल ओवैसी बंधुओं को छोड़ कर कोई भी राजनीतिक दल मंदिर का विरोध नहीं कर रहा है। ऐसे वातावरण में स्वभाविक प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र के स्थान पर एक हिन्दू राष्ट्र बनने वाला है?
भारत के पास एक बहुत सुन्दर चीज है और वह है उसका संविधान। भारत का संविधान शक्ति प्रथक्करण के सिद्धांत पर आधारित है और इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का अन्तिम व्याख्याकार बनाया गया है। यह निर्णय करने के लिए कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र बनेगा या नहीं हमें यह देखना होगा कि इस विषय पर सर्वोच्च न्यायलय का क्या रुख रहा है ।
प्रारंभ से ही सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय संविधान में निहित पंथनिरपेक्षता फ्रांस के संविधान में अपनाई गई नकारात्मक पंथनिरपेक्षता नहीं है जिसमें राष्ट्र धर्म से न कोई सम्बंध रखता है और न ही सरकारी क्षेत्र में धर्म की जरा भी उपस्थिति बर्दाश्त करता है। इसलिए फ्रांस में सरकारी विद्यालयों और कार्यालयों में किसी भी धार्मिक चिन्ह को धारण करने की मनाही है। वहाँ के विद्यालयों में न सिक्ख पगड़ी धारण कर सकते हैं और न मुस्लिम छात्राएँ हिजाब पहन सकती हैं और न ही ईसाई गले में क्रॉस का चिन्ह लटका सकते हैं। विद्यालयों में न किसी धार्मिक पर्व की छुट्टी होगी और न कोई धार्मिक पर्व मनाया जाएगा। इसके उलट भारत में सकारात्मक पंथनिरपेक्षता है जहॉं सभी धर्मों के साथ समान मैत्रीपूर्ण व्यवहार होगा और सभी को फलने फूलने का समान अवसर मिलेगा। पंथनिरपेक्षता का अर्थ यह नहीं है कि भारत नास्तिक या अधार्मिक है। इस सूत्र को सर्वोच्च न्यायालय अपने अनेक निर्णयों में घोषित कर चुका है।
गुजरात के सेंट जेवियर कॉलेज तथा आँध्रप्रदेश के अथीस्ट सोसायटी के वादों में यह मुद्दा था कि सरकारी कार्यक्रमों और उद्घाटनों में दीप प्रज्जवलन, नारियल फोड़ना और विद्यालयों में सरस्वती पूजा करना पंथनिरपेक्षता के विरुद्ध है और इसे तत्काल बंद करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया और इसे धर्म नहीं अपितु भारतीय संस्कृति का अंग बताया।
सन्तोष कुमार के वाद में विद्यालय में संस्कृत पढ़ाने और अरबी फारसी न पढ़ाने को पंथनिरपेक्षता के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई। वहाँ भी सर्वोच्च न्यायालय ने संस्कृत को भारतीय संस्कृति, इतिहास का एक अनिवार्य अंग माना और कहा कि अधिकांश भारतीय भाषाओं का मूल संस्कृत है और उसे पढ़ाना पंथनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं है।
अरुणा राय के वाद में 2005 के NCF को इस आधार पर चुनौती दी गई थी क्योंकि उसमें वैदिक गणित और विद्यालयों में सभी धर्मों के त्यौहारों को मनाने का प्रावधान था जिससे बच्चे सभी धर्मों को जान सकें। वादी का कहना था कि इससे शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने वादी के तर्कों को ठुकरा दिया और कहा कि पंथनिरपेक्षता का अर्थ नास्तिक होना नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारत में पंथनिरपेक्षता राज्य या न्यायपालिका को धार्मिक कुरीतियों को समाप्त करने से नहीं रोकेगी।
शाहबानो के वाद में चाहे वह तलाकशुदा मुस्लिम महिला के भरण पोषण का मामला हो, या फतिमा शेख के वाद में मुस्लिम व्यक्ति को बच्चा गोद लेने का अधिकार देने का मामला हो, चाहे डैनियल लतीफी का मामला हो जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के निर्णय को पुन: स्थापित कर दिया है, चाहे शायराबानो का मामला हो जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया और चाहे सबरीमाला का मामला हो जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी हो, इन सभी निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने धार्मिक नैतिकता की तुलना में संवैधानिक नैतिकता को ही ऊपर रखा है और स्पष्ट किया है कि भारतीय संविधान में सकारात्मक पंथनिरपेक्षता निहित है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री के राममंदिर के धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने में कोई बुराई नहीं है।
अनेक लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि भारत के प्रधानमंत्री का राममंदिर शिलान्यास पूजन में मुख्य जजमान बनना भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर एक कदम है। भय की राजनीति करने वाले लोगों ने इस बारे में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया था। केशवानंद भारती के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि संसद संविधान के आधारभूत ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। एस आर बोम्बाई के वाद में सर्वोच्च न्यायलय ने यह घोषित कर दिया है कि पंथनिरपेक्षता भारत के संविधान के आधारभूत ढांचे का ही एक अंग है।
इस पूरी चर्चा से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी मत, पंथ और संप्रदायों का सम्मान बना रहेगा। भारत में सभी पन्थों और मजहबों के लोगों के अधिकार सुरक्षित बने रहेंगे और उन्हें फलने- फूलने का भरपूर अवसर पहले के समान ही मिलता रहेगा। लेकिन यहां यह भी स्पष्ट है कि भारत एक नास्तिक या अधार्मिक राज्य नहीं है। भारतीय राज्य, भारतीय संस्कृति जो कि मुख्य रूप से हिन्दू संस्कृति है, को अपनाने और संवर्धित करने का काम भी करता रहेगा। क्योंकि मनोहर जोशी के वाद में सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि हिन्दुत्व कोई मजहब नहीं है अपितु एक जीवन पद्धति है।
(लेखक दिल्ली शिक्षा निदेशालय में इतिहास विषय के प्रवक्ता हैं)