मक्का का मुक़ाम-ए-अब्राहम विष्णु-पदचिह्न है!

मक्का का मुक़ाम-ए-अब्राहम विष्णु-पदचिह्न है!

प्रागैस्लामी अरब में हिंदू-संस्कृति- (भाग-9)

गुंजन अग्रवाल

मक्का का मुक़ाम-ए-अब्राहम विष्णु-पदचिह्न है!

काबा के प्रवेशद्वार के ठीक सामने एक विशाल अष्टकोणीय स्वर्ण-पिंजरे में एक स्वर्णमण्डित पद-चिह्न है, जिसे मुक़ाम-ए-अब्राहम (Station of Abraham) कहा जाता है। पिंजरे का गुम्बद आश्चर्यजनक रूप से शिवलिंग के आकार का है। इस्लामी-मान्यतानुसार यह पदचिह्न उनके पैग़ंबर अब्राहम का है, किन्तु वास्तव में यह पदचिह्न भगवान् विष्णु अथवा ब्रह्मा जी का है, जैसा कि प्राचीन ग्रन्थ ‘हरिहर क्षेत्रमाहात्म्य’ (हरिहरेश्वरमाहात्म्य) में उल्लेख आया है—

एकं   पदं   गयायांतु   मक्कायांतु   द्वितीयकम्।

तृतीयं स्थापितं दिव्यं मुक्त्यै शुक्लस्य सन्निधौ॥ (1)

अर्थात्, ‘(भगवान् विष्णु का) एक पद (चिह्न) गया में, दूसरा मक्का में तथा तीसरा शुक्लतीर्थ के समीप स्थापित है।

गया (बिहार) में फल्गु नदी के किनारे स्थित प्राचीन श्रीविष्णुपद-मन्दिर में चाँदी की अष्टकोणीय वेदी पर भगवान् विष्णु का 42 सेमी. लम्बा पदचिह्न है । इसी प्रकार मक्का में भी अष्टकोणीय स्वर्ण-पिंजरे में ही भगवान् विष्णु का पदचिह्न है। प्राचीन अष्टकोणीय आधार पर ही उसी वास्तु का स्वर्ण-पिंजरा खड़ा कर दिया गया है।

हिंदू-परम्परा में आठ दिशाओं के आठ दैवी पालक नियुक्त हैं, जो ‘अष्ट-दिक्पाल’ कहलाते हैं। स्वर्ग और पाताल मिलाकर दस दिशाएँ निर्देशित हो जाती हैं। किसी वस्तु का शिखर आकाश को निर्देशित करता है और नींव पाताल की प्रतीक होती है। अतः पृष्ठभाग पर इमारत अष्टकोणीय होने से दस दिशा निर्देशित हो जाती है। राजा या परमात्मा का अधिकार दस दिशाओं में होता है, अतः उनसे संबंधित इमारत या तो स्वयं अष्टकोणीय होती है या उसमें कहीं-कहीं अष्टकोणीय आकार बनाए जाते हैं। (2)

काबा का निर्माण वैदिक अष्टकोणीय आधार पर हुआ है

‘शुक्लतीर्थ’ नाम से अपने देश में तीन तीर्थस्थानों की पहचान की गई है। ये सभी तीर्थ विष्णु या शिव से संबंधित हैं। सम्प्रति, इनमें किसी भी मन्दिर में विष्णु-पदचिह्न नहीं है। किन्तु, अहमदाबाद (गुजरात) से 200 किमी. की दूरी पर अवस्थित भड़ौच में ‘शुक्लतीर्थ’ नामक एक छोटा ग्राम विद्यमान है। यह भड़ौच से 15 किमी. की दूरी पर नर्मदा के तट पर अवस्थित है। यहाँ भगवान् शंकर, विष्णु, ब्रह्मा सहित अनेक देवी-देवताओं के अत्यन्त प्राचीन मन्दिर हैं। मान्यता है कि यहाँ आकर गूँगे बच्चे ठीक हो जाते हैं। यहाँ भगवान् शंकर का ‘शुक्लेश्वर महादेव मन्दिर’ और महादेव और विष्णु जी का ‘ओंकारेश्वनाथ मन्दिर’ स्थानीय लोगों में अत्यन्त पूजनीय है। ‘शुक्लेश्वर महादेव मन्दिर’ की विशेषता यह है कि यहाँ स्थापित शिवलिंग, संगमरमरी अष्टोणीय वेदी पर बना हुआ है।

(क्रमशः जारी)

(लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रेमासिक सभ्यता संवादके कार्यकारी सम्पादक हैं)

संदर्भः

  1. हरिहरक्षेत्रमाहात्म्य (हरिहरेश्वरमाहात्म्य), 7.6
  2. ताजमहल तेजोमहालय शिव-मन्दिर है, पुरुषोत्तम नागेश ओक, हिंदी साहित्य सदन, नयी दिल्ली, 2007, पृ. 18

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *