पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग – डॉ. भागवत

पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग - डॉ. भागवत

पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग - डॉ. भागवत

हरिद्वार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने पर्यावरण संरक्षण को भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताते हुए समाज के प्रबुद्ध और जागरूक लोगों से इस दिशा में अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार सार्थक योगदान करने का आह्वान किया। पर्यावरण समिति महाकुंभ एवं पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के तत्वाधान में आयोजित गोष्ठी में सरसंघचालक ने कहा कि – पर्यावरण संरक्षण के कामों में तेजी लानी होगी। यह हमारा सामाजिक दायित्व है।

पर्यावरण गतिविधि ने 01 अप्रैल से हरिद्वार में शुरू हुए कुंभ मेले को पॉलिथीन मुक्त बनाने का आह्वान किया है और इसके लिए पर्यावरण समिति महाकुंभ हरिद्वार 2021 का गठन किया है। इस समिति के अंतर्गत व्यापारियों, संतों, महिलाओं, शैक्षणिक संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों इत्यादि अलग-अलग समूहों की 16 उप समितियां बनाई गई हैं, जो अपने-अपने सामाजिक वर्गों के बीच कुंभ को स्वच्छ बनाए रखने और पॉलिथीन मुक्त बनाने के प्रति जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। सेमिनार में देश के अलग-अलग हिस्सों के 40 विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों ने भी हिस्सा लिया। पर्यावरण गतिविधि देश भर के शिक्षण संस्थानों को भी पर्यावरण संरक्षण के वृहद अभियान से जोड़ना चाहता है।

डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि ‘हिन्दू परंपरा में प्रकृति संरक्षण अलग से किया जाने वाला कोई काम नहीं है। हमारे लिए यह जीवन का एक हिस्सा है जो हमारे व्यक्तिगत और समाज जीवन के हर पहलू में शामिल है। प्रकृति से हमारे स्वभाविक प्रेम में यह सर्वदा सम्मिलित है।’

पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग - डॉ. भागवत

‘पर्यावरण की बात करते हुए हर किसी के लिए यह समझना बहुत आवश्यक है कि यह सब एक-दूसरे से सम्बद्ध है। आप जल की बात करते हुए जंगल को नहीं छोड़ सकते, या मिट्टी की समस्या पर काम करते हुए जल को नहीं छोड़ सकते। यह तो समाधान का एक पहलू है। दूसरा पहलू समाज की सम्मिलित शक्ति का उपयोग है। व्यक्तिगत प्रयास तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन उसे सामाजिक प्रयास का एक हिस्सा नहीं बनाया जाता, तो हम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते।’

उन्होंने कहा कि लोभ को पूरा करना प्रकृति के बस में भी नहीं है। हर बात की उपयुक्तता और योग्यता जानने के बाद भी मन का भाव बदलना नहीं चाहिए। भारत विविधता में एकता की शक्ति के साथ विश्व में सभी विपदाओं को वर्षों से झेलते हुए आज भी अडिग खड़ा है और आगे भी हमेशा रहेगा। विकास और पर्यावरण एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं, ऐसा सोचकर विकास का नया इतिहास लिखेंगे। इतिहास में भी हम विश्व में नम्बर वन थे, बावजूद उसके हमारे यहां पर्यावरण से जुड़ी कोई समस्या नहीं थी।

हम पिछले 6 हजार साल से खेती करके दुनिया को अन्न उपलब्ध कराते आए हैं। बावजूद इसके आज भी हमारे यहां की भूमि उपजाऊ है। ये इस बात का प्रमाण है कि हम पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं और पर्यावरण के विकास से ही सृष्टि का विकास है। मनुष्य के रूप में हम ही सबसे महान हैं, इस अहंकार को त्याग कर हमें पर्यावरण पर विचार करना होगा। हम अपने आचरण को बदल दें, तो निश्चित ही पर्यावरण में भी स्थितियां बदलेंगी। पर्यावरण गतिविधि का काम पर्यावरण को दूषित करने वालों के आचरण को बदलना है।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रो. वाइस चांसलर डॉ. चिन्मय पांडेय ने भारतीय सनातन परंपरा में कुंभ के महत्व को अमृत मंथन की कहानी से जोड़ा। कहा कि संघर्ष की गाथा से ही सौभाग्य की गंगा निकल सकती है। समुद्र मंथन में भी अमृत से पहले विष निकला था, वही स्थिति आज पर्यावरण संरक्षण को लेकर बनी हुई है। आज पर्यावरण की स्थितियों पर विचार इसलिए जरूरी है क्योंकि दुनिया में हो रही हर 8वीं मौत वायु प्रदूषण से हो रही है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए जा रहे हमारे प्रयास केवल कुम्भ तक सिमट कर नहीं रहने वाले हैं। भारत के शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर हम वातावरण में फैले इस विष को अमृत में बदलने के लिए निरंतर इसी प्रकार कार्यरत रहेंगे।

सरसंघचालक ने पर्यावरण संरक्षण गतिविधि की मासिक पत्रिका ‘Paryavaran Perspective’ का विमोचन भी किया। पत्रिका के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे सराहनीय प्रयासों को समाज के सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाएगा।

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