आचार्य विद्यासागर जी महाराज राष्ट्र की निधि हैं- डॉ.मोहन भागवत

आचार्य विद्यासागर जी महाराज राष्ट्र की निधि हैं- डॉ.मोहन भागवत

आचार्य विद्यासागर जी महाराज राष्ट्र की निधि हैं- डॉ.मोहन भागवतआचार्य विद्यासागर जी महाराज राष्ट्र की निधि हैं- डॉ.मोहन भागवत

जयपुर। जैन समाज के सर्वोच्च आचार्य सन्त शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज इस वर्ष 16 फरवरी को डोंगरगढ़ अतिशय क्षेत्र में समाधिस्थ हो गए थे। इसके बाद रिक्त हुए पद पर 16 अप्रैल को कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र में नए आचार्य समय सागर जी महाराज का पदारोहण हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघसंचालक डॉ. मोहन भागवत उपस्थित थे। उन्होंने अपने उद्‌बोधन में कहा कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज अध्यात्म के सागर थे। उन्होंने अपनी अध्यात्म साधना से भारत को एकाकार बनाने का सफल प्रयास किया। आचार्य विद्यासागर जी ने भारत को स्वर्णिम भारत बनाने हेतु संदेश दिया कि भारत को भारत बोलो, इंडिया नहीं। डॉ. भागवत ने आचार्य विद्यासागर के दर्शन के दौरान हुई चर्चा को उजागर करते हुये कहा कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज देश को उन्नति के मार्ग में ले जाने हेतु होनहार युवकों को संदेश दिया कि वे भारत की आर्थिक उन्नति में अपना सहयोग दें। डॉ. भागवत ने कहा कि आचार्य विद्यासागर जी राष्ट्र की निधि हैं। उन्होंने कठिन परिस्थितियों को अपने आत्मबल से जीता है। आचार्य विद्यासागर जी महाराज की भांति आचार्य समयसागर जी भी श्रमण संघ को संचालित करेंगे और आत्मसुखाय व राष्ट्र हिताय की भावना का प्रसार करेंगे। डॉ. मोहन भागवत ने श्रमण संघ के साथ नवाचार्य समय सागर महाराज जी को आसन पर प्रतिष्ठित किया।

समयसागर जी के आचार्य बनने के बाद पहला प्रवचन

कुंडलपुर में नवीन आचार्य समय सागर महाराज ने पद संभालने के बाद धर्मसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा, संत पुरुषों के चरण स्पर्श से यह धरती पवित्र हो रही है। आपका सौभाग्य है कि आपको गुरुदेव आचार्य विद्यासागर को जानने का अवसर मिला, उन्होंने पूरे विश्व के लिए प्रकाश दिया है। जो गुरुदेव ने किया है वो न भूतो: न भविष्यति है। ऐसा प्रकाश वही दे सकते हैं। सत्य और शील का अवलंबन धारण किया है। भगवान भक्ति और पूजा से प्रसन्न नहीं होते हैं। भगवान की आज्ञा का अनुपालन जब हृदय से करते हैं तब भगवान प्रसन्न होते हैं। आजकल लोग औपचारिक भक्ति कर कर रहे हैं। प्रभु का दर्शन साक्षात हमने नहीं किया ना और ना ही आपने। प्रभु का स्वरूप गुरु में ही दिखाई देता था।

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