विदेशों में भी मांग है राजस्थान में बनी गवर माता की प्रतिमाओं की

विदेशों में भी मांग है राजस्थान में बनी गवर माता की प्रतिमाओं की

विदेशों में भी मांग है राजस्थान में बनी गवर माता की प्रतिमाओं कीविदेशों में भी मांग है राजस्थान में बनी गवर माता की प्रतिमाओं की

राजस्थान के अत्यंत लोकप्रिय लोक महोत्सवों में गणगौर प्रमुख स्थान रखता है। प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तीज को मनाए जाने वाले गणगौर (गवर माता) का त्यौहार इस वर्ष 11 अप्रैल को उत्साह से मनाया जाएगा।

सामान्यत: गणगौर के त्यौहार में शिव-पार्वती के रूप में ईसरजी और गवर माता की काष्ठ प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि शिवजी से विवाह के बाद जब देवी पार्वती (माता गणगौर या  गवरजा) पहली बार मायके आई थीं, तब उनके आगमन की खुशी में स्त्रियां यह त्यौहार मनाती हैं। इसीलिए नवविवाहित लड़कियां अपना पहला गणगौर मायके में ही मनाती हैं। यह त्यौहार फाल्गुन पूर्णिमा (होली) के दूसरे दिन से शुरू हो जाता है और 18 दिनों तक चलता है। परिवारों में ईसरजी और गणगौर काष्ठ प्रतिमाएँ रखी जाती हैं। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक प्रतिदिन वे फूल-फल, दूब, पकवान व अंकुरित जौ से शिव-पार्वती की अर्चना करती हैं।

गवर व ईसर की प्रतिमा तैयार करने में आम व सागवान की लकड़ी का उपयोग होता है। इन प्रतिमाओं को तैयार करने में कई दिन लगते हैं। पहले लकड़ी से प्रतिमाओं को आकार देकर सुखाया जाता है। जिससे लकड़ी जितनी फटनी होती है, उतनी फट जाती है। फिर इन दरारों में मिश्रण भर कर उन्हें पक्का रूप दिया जाता है। इस तरीके से बनी प्रतिमाएं तीन दशक तक चलती हैं और देश ही नहीं विदेशों में भी प्रचलित हैं।

कौन हैं गवर माता

गवर माता पार्वती का गौर अर्थात श्वेत रूप हैं। उन्हें गौरी और महागौरी भी कहते हैं। अष्टमी के दिन इनकी पूजा होती है। लेकिन चैत्र नवरात्र की तृतीया को उन्हें इसलिए पूजा जाता है क्योंकि राजस्थान की लोक परंपरा के अनुसार इस दिन माता की अपने मायके से विदाई हुई थी।

गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ है गौरी। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म है। मान्यता अनुसार माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। विदाई के दिन को ही गणगौर कहा जाता है।

राजस्थान में गणगौर का है विशेष महत्व

राजस्थान की राजधानी जयपुर में गणगौर उत्सव दो दिन तक मनाया जाता है। ईसर और गणगौर की प्रतिमाओं की शोभायात्रा राजमहल से निकलती है। इसको देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैनानी उमड़ते हैं। सभी उत्साह से भाग लेते हैं। इस उत्सव पर एकत्रित भीड़ जिस श्रद्धा एवं भक्ति के साथ धार्मिक अनुशासन में बंधी गणगौर की जय-जयकार करती हुई भारत की सांस्कृतिक परम्परा का निर्वाह करती है उसे देख कर अन्य मतावलम्बी भी इस संस्कृति के प्रति श्रद्धा भाव से ओतप्रोत हो जाते हैं।

विश्व का सबसे अनूठा पर्व धींगा गवर मेला 

जोधपुर में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया के दिन मेला लगता है, जिसे धींगा गवर या बेंतमार गणगौर के नाम से जाना जाता है। धींगा का अर्थ मस्ती है। यह त्यौहार रात भर चलता है। जिसमें महिलाएं गवरजी की प्रतिमा की पूजा करती हैं और रात भर अलग-अलग वेषभूषा धारण करती हैं। विश्व का सबसे अनूठा पर्व धींगा गवर मेला जोधपुर की विरासत रहा है। 1970 के दशक से पहले गवर माता को धींगा गवर के दिन बिठाने की परम्परा आज भी जारी है।

कई देशों में राजस्थान के गवर ईसर की डिमांड 

राजस्थान के गवर-ईसर का अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जापान, इंग्लैण्ड, यूरोप, कनाडा, गल्फ व घाना सहित लगभग बीस से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है।

करोड़ों की बिकती हैं प्रतिमाएं

जोधपुर में प्रतिमाओं के एक्सपोर्टर विकास चौहान कहते हैं कि प्रत्येक सीजन में जोधपुर से ही करोड़ों रुपए की गवर व ईसर की प्रतिमाओं का निर्यात होता है। साइज और फिनिशिंग के हिसाब से इनका रेट तय होता है। सोना चढ़ी लकड़ी की प्रतिमा की कीमत लाख रुपए भी हो सकती है। 

ताकि बच्चे न भूलें संस्कृति को
विदेशों में रहने वाले भारतीय प्रवासी इन प्रतिमाओं को अधिक खरीदते हैं, इसके माध्यम से वे अपने त्यौहारों और परंपराओं का निर्वहन तो करते ही हैं, जड़ों से भी जुड़े रहते हैं। अमेरिका के डलास में रहने वाली ईना ने बताया कि गणगौर पर वे प्रतिवर्ष गवर-ईसर की पूजा करती हैं। ऐसा करने के पीछे उनका अपना श्रद्धा भाव तो है ही, साथ ही उन्हें लगता है कि उनके बच्चे अपने देश की परंपराओं व संस्कृति से जुड़े रहें। वह कहती हैं, यहॉं हम सब भारतीय मिलकर इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं।

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1 thought on “विदेशों में भी मांग है राजस्थान में बनी गवर माता की प्रतिमाओं की

  1. बहुत जानकारी पूर्ण आलेख है ऐसे आलेख की प्रतीक्षा रहती हैं

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