अटलजी बहुत याद आते हैं

अटलजी बहुत याद आते हैं

बलबीर पुंज

अटलजी बहुत याद आते हैंअटलजी बहुत याद आते हैं

आगामी 25 दिसंबर का देश-दुनिया में बहुत ही महत्व है। इस दिन दुनियाभर (भारत सहित) के करोड़ों ईसाई अपने आराध्य ईसा मसीह का जन्मदिवस हर बार की तरह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे। यीशु के असंख्य श्रद्धालुओं को इस बात से रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ता कि यह दिन एक पोप की कोरी-कल्पना पर आधारित है, जिसका उल्लेख बाइबल तक में नहीं है। उनके लिए अपने इष्ट द्वारा प्रदत्त 10 आज्ञाओं की अनुपालना, उनका विनम्र व्यक्तित्व और विनयशील जीवन ही महत्व रखता है। यह संयोग ही है कि इसी दिन वर्ष 1924 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, जननायक और कुशल राजनीतिज्ञ दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी का भी जन्म हुआ था। इस बार उनकी 99वीं जयंती मनाई जाएगी। वर्ष 2014 से भाजपा शासित राज्य सरकारें इस दिन को सुशासन दिवस के रूप में मना रही हैं।

अटलजी से मेरा निजी परिचय 1980 के दशक में हुआ था। वे न केवल आयु में मुझसे लगभग 25 वर्ष बड़े थे, अपितु जीवन के कई आयामों में श्रेष्ठ भी थे। जहां अटलजी असाधारण बौद्धिक क्षमता, ऊंचे राजनीतिक व्यक्तित्व और प्रखर वक्ता आदि गुणों से धनी थे, वहीं मैं उस कालखंड में दिल्ली स्थित एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक का साधारण पत्रकार हुआ करता था। इतना भारी अंतर होने बाद भी वे अपने स्वभाव के अनुरूप मुझसे मित्रवत और स्नेहपूर्ण व्यवहार रखते थे। अटलजी के संस्मरण भर से उनके द्वारा मुझे कही एक-एक बात, उनके साथ बीते विनोदपूर्ण क्षण, उन्मुक्त हंसी-ठहाके, व्यंग्यों से लिपटी उनकी चुटीली टिप्पणियां, उनका सरल आदर्श परंतु गरिमामय व्यवहार— मेरे मन-मस्तिष्क में एकाएक जीवंत हो उठता है। अटलजी से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाएं और पहलू हैं, जो या तो उजागर ही नहीं हुए या फिर बहुत कम लोगों को उनकी जानकारी है। उन सीमित लोगों की सूची में मैं भी एक हूं। उन्हीं में से कुछ स्मरणार्थ क्षणों को मैं अपर्याप्त शब्दों में पिरोने का प्रयास कर रहा हूं।

जब मुझे उनके साथ यात्रा करने का अवसर मिलता, तब अनुज होने के नाते मैं अक्सर सूटकेस आदि सामानों से भरी ट्रॉली को खींचा करता था। तब अटलजी ने तय किया था कि कोई अकेला बोझा नहीं उठाएगा, यात्रा के समय दोनों बारी-बारी ऐसा किया करेंगे। जब अटलजी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने, तब 12 नवंबर 2001 को एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका ने उनसे संबंधित आलेख प्रकाशित किया था। पत्रिका ने अपने उस आलेख के साथ जिस वर्षों पुराने फाइल छायाचित्र का उपयोग किया था, उसमें अटलजी एयरपोर्ट पर बैगों से भरी ट्रॉली को खींचते हुए नजर आ रहे थे, जबकि मैं उनके बगल में खड़ा था। वह छायाचित्र मेरे लिए आज भी किसी धरोहर से कम नहीं है।

अटलजी कितने विनम्र थे, यह वर्ष 1991 की उस घटना से स्पष्ट हो जाता है, जब मैं अस्वस्थ होने के कारण दिल्ली स्थित मूलचंद अस्पताल में उपचार हेतु भर्ती था। उस समय अटलजी मेरा हालचाल जानने वहां पहुंचे। अस्पताल के मुख्य द्वार पर तैनात सुरक्षाकर्मी अटलजी को पहचान नहीं पाया और मिलने का निर्धारित समय नहीं होने और अगले दिन आने का हवाला देकर उन्हें वापस भेज दिया। जब अटलजी लौट रहे थे, तब मेरा उपचार कर रहे डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने उन्हें देख लिया और जानकारी लेने के बाद वाजपेयीजी को मुझसे भेंट करवाने मेरे कक्ष में ले आए। यह असाधारण घटना अटलजी के सौम्य और सभ्य व्यक्तित्व को ही चरितार्थ करती है, जो वर्तमान समय के राजनेताओं के बीच दुर्लभ हो चुकी है।

जब मैं दिल्ली स्थित पंडारा रोड में रहता था, तब एक दिन अटलजी ने मुझे मिलने बुलाया। जब मैं पहुंचा, तब अटलजी घर पर नहीं थे और उनका परिवार देश से बाहर था, इसलिए मैं अकेला बैठक कक्ष में उनकी प्रतीक्षा करने लगा। काफी देर प्रतीक्षा करने के बाद मैं वापस अपने घर लौट आया। कुछ समय बाद अटलजी का चालक उनके द्वारा लेखबद्ध चिट्ठी लेकर मेरे घर पहुंचा, जिसमें लिखा था, “ट्रैफिक जाम के कारण मैं समय पर घर पहुंच नहीं सका। मैं क्षमाप्रार्थी हूं। यदि संभव हो, तो वापस आकर मेरे साथ भोजन कीजिए।” मैं तुरंत उनके घर लौटा और हमने स्वादिष्ट भोजन का आंनद लिया। खाने के शौकीन अटलजी ने तब मीठे में बंगाली मार्केट से गरमागरम गुलाब जामुन मंगवाए थे।

मैं साक्षी हूं कि विषम परिस्थितियों में अटलजी ने कभी अपना धीरज नहीं खोया। बात 1990 के दशक की है, जब हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी सभा के लिए मैं उनके साथ एक छोटे निजी हवाई जहाज में यात्रा कर रहा था। हमें धर्मशाला उतरना था। मेरे पास की सीट पर अटलजी आराम कर रहे थे। अचानक मुझे सह विमान-चालक ने कॉकपिट में बुलाया और पूछा, “क्या आप यह देखकर बता सकते है कि नीचे जो शहर दिखाई दे रहा है, वह धर्मशाला ही है?” मेरे लिए यह अनुमान कर पाना असंभव था। हवाई जहाज में बिना रेडियो संचार यंत्र और दूसरे विश्वयुद्ध का दिशा-बोधक मानचित्र होने के कारण दोनों पायलट किंकर्तव्यविमूढ़ थे।

जब मैं चिंतित मुद्रा में कॉकपिट से बाहर निकला, तब अटलजी ने पूछा, “कोई परेशानी है?” मैंने उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी दी, तब मेरी बात सुनने के बाद वाजपेयीजी पुनः सो गए। इस बीच हवाई जहाज आसमान में चक्कर काटता रहा। हम सभी के हाथ-पांव फूल चुके थे। तभी अटलजी उठे और मजाक करते हुए कहा, “तेल खत्म हो जाने पर हवाई जहाज पहाड़ों से टकराकर चूरचूर हो जाएगा। मैं देख रहा हूं कि मेरा अंतिम संस्कार हो रहा है।” उस समय वाजपेयीजी पूर्णतः सामान्य थे। सौभाग्य से तब इंडियन एयरलाइंस का एक हवाई जहाज हमें उतरता दिखा। उसके पीछे हमारा विमान भी उतर गया। तब ज्ञात हुआ कि हम सभी कुल्लू में थे। यह एक बेहद रोमांचक यात्रा थी।

अटलजी के साथ मेरे ऐसे कई किस्से हैं, जिन्हें एक आलेख में शब्द सीमा होने के कारण समेटना— असंभव है। मेरा मानना है कि विश्व में ऐसे कई युगपुरुषों का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपने राष्ट्र और उसके कालचक्र पर अमिट छाप छोड़ी है। अटलजी की गणना उसी श्रेणी में होती है। उन्हें मेरा सादर नमन।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं)

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