भारत सुता तू जाग जा

भारत सुता तू जाग जा

डॉ. नीलप्रभा नाहर 

भारत सुता तू जाग जा भारत सुता तू जाग जा

काल रात्रि के प्रहर में 

घने से भी हो घना अंधेरा 

हाथ को न हाथ सूझे 

दूर कहीं लगे सवेरा 

हाथ में ले दीप तुम 

तिमिर को निगल जाना 

दीप से कर दीप प्रदीप्त

सौ सूर्यों सा सजाना।

 

भू के कंपन से जब 

भूमि खिसके पैरों तले

क्रुद्ध हवा के झोंकों से 

नीड़ ही नहीं अंबर हिले 

पर्वतों सी अडिग अविचल 

स्वयं को अवलंब बनाना 

लौह कदमों को अपने 

धरती में गहरे गड़ाना।

 

नारी हो तुम

न कोई अरि तुम्हारा 

आदि शक्ति का अंश तुम 

कि काल भी तुमसे हारा 

सप्त अलंकारों से ईश ने 

देह को तुम्हारी सँवारा 

उड़ेल दो, उड़ेल दो 

सृष्टि पर मातृत्व सारा।

 

कात्यायनी, कल्याणी हो 

गौरी दुर्गा काली हो 

जीवन देने वाली हो 

जीवन लेने वाली हो 

शक्ति स्वरूपा

शक्ति की पहचान हो 

जाग कर जगाने वाली

क्रांति की मशाल हो।

 

सुप्त सज्जन शक्ति को

जगा दे भारत भक्ति को 

माँ भारती की संतान को 

जगा दे हिंदुस्तान को 

आसुरी संहार को 

पीड़ितों के त्राण को 

तैयार कर पीढ़ियों को 

सज्ज हो परमार्थ को।

 

जाग जा, जाग जा 

भारत सुता तू जाग जा 

माँ भारती की वंशजा 

भ्रमित न हो, चेत जा 

रुद्ध कर छल रुदन 

भारतीयता का राग गा  

जाग जा जाग जा 

भारत सुता तु जाग जा।

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1 thought on “भारत सुता तू जाग जा

  1. मातृ शक्ति कुछ भी कर सकती है हमारी शक्ति किसी काम नहीं है ❤️🙏🏻

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