अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी प्राणायाम
वैद्य चन्द्रकान्त गौतम
दह्यन्ते ध्यायमानानां धातूनां हि यथा मलाः।
तथेन्देयाणां दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहात्।।(मनु)
अर्थात् जैसे अग्नि में धोंके जाने से धातुओं के मल नष्ट होते हैं, वैसे ही प्राणायाम से इन्द्रियों के दोष नष्ट होते हैं।
हमारे शरीर के संचालन के लिए हमारे शरीर में वायु-कोषों की रचना की गई है। अपनी श्वसन प्रणाली के माध्यम से हम एक बार श्वास लेते हैं तथा एक बार श्वास निकालते हैं। जब हम श्वसन क्रिया करते हैं तो वायुमंडल में व्याप्त प्राण वायु (ऑक्सीजन) हमारी श्वसन प्रणाली के माध्यम से हमारे वायु- कोषों को प्रपूरित करता है तथा यह प्राणवायु वायुकोषों के माध्यम से हमारे रक्त प्रवाह में जाती है तथा हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका का पोषण करती है तथा अशुद्ध रक्त के साथ अशुद्ध वायु (कार्बनडाई आक्साइड) शरीर से निसृत होती है। शुद्ध रक्त को ले जाने वाली प्रणाली को धमनियाँ कहते हैं तथा अशुद्ध रक्त को लेकर आने वाली प्रणाली को शिराएं कहते हैं।
सामान्य जीवन में हमारे वायु कोष लगभग चालीस प्रतिशत ही फूलते हैं।परन्तु जब हम परिश्रम करते हैं, पर्वतारोहण करते हैं या अधिक श्रम करते हैं, तभी हमारे वायु कोष पर्याप्त मात्रा में फूल पाते हैं।
प्राणायाम-प्राणवायु के आवागमन को व्यवस्थित करने का प्रयास ही प्राणायाम है। प्राणायाम क्रिया के तीन विभाग किये गये हैं:
1) पूरक – पूरक क्रिया के माध्यम से हम धीरे-धीरे वायु कोषों को प्रपूरित करते हैं एवं ब्रह्मा जी का ध्यान करते हैं।
2) कुम्भक – कुम्भक क्रिया के माध्यम से वायु कोषों में वायु को कुछ समय रोका जाता है एवं विष्णु जी का ध्यान करते हैं।
3) रेचक – रेचक क्रिया के माध्यम से वायु कोषों को धीरे-धीरे रिक्त करते हैं एवं शिव जी का ध्यान करते हैं।
जिन लोगों के वायु कोष पूरे नहीं फूलते हैं वे लोग प्रायः रुग्ण ही रहते हैं। जो प्राणी पूरक, कुम्भक, रेचक क्रिया ठीक से नहीं कर पाते हैं उन्हें वायु कोषों के संक्रमण का सर्वाधिक डर रहता है। वर्तमान समय में व्याप्त संक्रामक रोग कोरोना वायरस कोविड-19 के कारण से संक्रमित रुग्ण का श्वसन तंत्र ही सर्वाधिक प्रभावित होता है।
अतः श्वसन तंत्र की रक्षा के लिए नियमित प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। नियमित रूप से किया गया प्राणायाम मनुष्यों के लिए जीवन रक्षक उपाय है।