पाकिस्तान में हिन्दुओं की दुर्दशा

पाकिस्तान में मुस्लिमों को ही आवश्यक राशन सामग्री उपलब्ध करवाना और गैर मुस्लिमों को इससे वंचित रखने जैसे भेदभाव पूर्ण कृत्य ने न केवल हिंदू एवं ईसाई मतावलंबी राष्ट्रों बल्कि संपूर्ण विश्व की मानवता को आहत किया है। एक तरफ भारत अपनी संस्कृति के चिर परिचित आदर्श सर्वे भवंतु सुखिन: का पालन अपनी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सत्य निष्ठा के साथ करता आया है वहीं दूसरी ओर भारत से अलग होकर लाखों निर्दोषों के रक्त से सिंचित भूमि पर बना पाकिस्तान आज भी मानवता से पहले अपने निजी स्वार्थ को महत्व देता है।

प्रीति शर्मा

जहां एक ओर समस्त वैश्विक शक्तियां कोरोना वायरस जनित महामारी से लड़ने में तथा मानवता की रक्षा के लिए हर संभव प्रयासों में जुटी हुई हैं, वहीं विश्व का एक देश मानवता को शर्मसार कर रहा है। आज भारत मानव मात्र की सेवा और महामारी से सुरक्षा के लिए पिछले कई दिनों से चरणबद्ध रूप से प्रयासरत है और देश में प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के आवश्यक सहायता उपलब्ध करवा रहा है। भारत ने विकासशील और अल्प विकसित राष्ट्रों के साथ-साथ विश्व पटल पर अपनी आर्थिक और तकनीकी शक्ति का लोहा मनवा लेने वाली महान शक्तियों को भी निस्वार्थ सहायता देने में एक पल की देरी नहीं की। वहीं भारत का पड़ोसी पाकिस्तान अपनी ही भूमि पर रहने वाले गैर मुस्लिमों पर अत्याचार करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा। कभी बलपूर्वक मतांतरण करवाने के लिए सामूहिक मानव हत्याएं करना, कभी मंदिरों, गुरुद्वारों और चर्चों पर अमानवीय हमले करके यह देश अपनी ही भौगोलिक सीमाओं में रहने वाले जन समूह को आतंकित करता रहता है।

पाकिस्तान वर्षों से आतंकवाद को प्रश्रय देने के साथ साथ अल्पसंख्यकों पर तरह तरह के अत्याचार और अमानवीय कृत्य कर संवेदनहीनता की सारी सीमाएं पार करता रहा है। संपूर्ण वैश्विक समुदाय के विपरीत पाकिस्तान ने इस महामारी से सुरक्षा करने की अपेक्षा अल्पसंख्यकों के प्रति अत्याचार का नया मार्ग खोज लिया है। ताजा घटना देखें तो महामारी के इस संवेदनशील काल में एक एनजीओ द्वारा हिंदू एवं ईसाई अल्पसंख्यकों को इस्लाम का ‘कलमा तय्यब’ पढ़ने की शर्त न मानने पर राशन उपलब्ध करवाने से मना कर दिया। ऐसा उस समय किया गया जब संपूर्ण वितरण प्रणाली और बाजार कोरोना से निपटने के लिए बंद कर दिए गए थे और जरूरतमंदों के लिए राशन की कोई व्यवस्था नहीं थी।

पाकिस्तान में मुस्लिमों को ही आवश्यक राशन सामग्री उपलब्ध करवाना और गैर मुस्लिमों को इससे वंचित रखने जैसे भेदभाव पूर्ण कृत्य ने न केवल हिंदू एवं ईसाई मतावलंबी राष्ट्रों बल्कि संपूर्ण विश्व की मानवता को आहत किया है। एक तरफ भारत अपनी संस्कृति के चिर परिचित आदर्श सर्वे भवंतु सुखिन: का पालन अपनी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सत्य निष्ठा के साथ करता आया है वहीं दूसरी ओर भारत से अलग होकर लाखों निर्दोषों के रक्त से रंजित भूमि पर बना पाकिस्तान आज भी मानवता से पहले अपने निजी स्वार्थ को महत्व देता है।

पाकिस्तान में रह रहे असहाय गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों का भेदभाव जनित ह्रदय विदारक क्रंदन समस्त विश्व को उद्वेलित करने वाला है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संयुक्त राज्य अमेरिकी आयोग ने विषय का संज्ञान लेते हुए पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों को राशन सहायता देने से मना करने की भेदभाव पूर्ण नीति की घोर निंदा की है।

विचारणीय है कि जब भारत पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में ऐसी प्रताड़ना के शिकार अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता संशोधन कानून लाता है तो पाकिस्तान इसे मुस्लिम विरोधी बताकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इसका विरोध करता है। पाकिस्तान संकट की इस घड़ी में भी भारत से ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की शिक्षा लेने की बजाय निजी हितों की रोटी सेंकने में व्यस्त है, वह मानवता का आधारभूत पाठ भी भूल चुका है। वर्तमान में समस्त राष्ट्रों को विश्व मंच पर एकजुट होकर पाकिस्तान के इस अनैतिक रवैए के विरुद्ध कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। शांति के समर्थक के रूप में प्रतिष्ठा संपन्न भारत के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण समय है, जब उसे देश में व्याप्त महामारी से निपटने के साथ-साथ पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के लिए आगे आते हुए वैश्विक जनमत एकत्र करना होगा। जिस प्रकार महामारी के कठोर प्रहार से संकटापन्न विदेशों में गए हुए भारतीयों को बिना समय गंवाए वापस लाया गया और उन्हें पूर्ण सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सहायता प्रदान की गई उसी प्रकार पाकिस्तान में वर्षों से अत्याचार सह रहे अल्पसंख्यक को की मुक्ति के लिए भी भारत को हस्तक्षेप करना ही होगा, तभी सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया का भारतीय सांस्कृतिक आदर्श सुनिश्चित होगा।

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