मुस्लिम युवाओं में मजहबी कट्टरता और बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति चिंता का विषय

मुस्लिम युवाओं में मजहबी कट्टरता और बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति चिंता का विषय

मुस्लिम युवाओं में मजहबी कट्टरता और बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति चिंता का विषयमुस्लिम युवाओं में मजहबी कट्टरता और बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति चिंता का विषय

देश भर ही नहीं अकेले राजस्थान में पिछले कुछ समय में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जो अपराध किए हैं, उनमें एक चिंताजनक स्थिति यह सामने आ रही है कि अपराध करने वाले अधिकांश युवा कम आयु के हैं। यह स्थिति इसलिए चिंताजनक है कि जिस आयु में इन युवाओं को अपने कॅरियर के प्रति एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए था, उस आयु में वे ऐसे अपराध कर रहे हैं, जिनका सीधा सम्बन्ध कट्टरपंथी सोच से दिख रहा है और यह स्थिति तब है जब स्वयं सरकार प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपए मदरसे चलाने और इनमें तथाकथित आधुनिक शिक्षा देने पर खर्च करती है।

कुछ उदाहरण

  • चित्तौड़गढ़ में जून 2022 को भाजपा नेता जगदीश सोनी के पुत्र रतन सोनी की हत्या करने वाले चार मुस्लिम युवाओं मे से तीन की आयु 22 साल थी।
  • मई 2022 में भीलवाड़ा में ओमप्रकाश तापड़िया की हत्या करने वाले तीन मुस्लिमों में से दो नाबालिग थे।
  • अक्टूबर 2021 में झालावाड़ में एक लड़की ने पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम युवक से बात करना बंद किया तो उसने उसकी हत्या कर दी। अपराधी की आयु मात्र 21 वर्ष थी।
  • अगस्त 2021 में जयपुर में एक टैक्सी चालक खेमचंद की हत्या करने वाले दो मुस्लिम युवकों में से एक की आयु सिर्फ 23 वर्ष थी। दूसरा भी ज्यादा बड़ा नहीं था।
  • हाल में उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या के मामले में जो अपराधी पकड़े गए हैं; उनमें मुख्य अपराधियों की आयु भी बहुत अधिक नहीं है, वहीं जो अन्य अपराधी पकड़े गए हैं, उनमें से एक 23 और दूसरा 25 वर्ष का है। इन्हें हत्या के षड्यंत्र के मामले में पकड़ा गया है।

ये मात्र कुछ उदाहरण हैं। ऐसी कई घटनाएं हम होते देख रहे हैं, जिनमें से अधिकांश रिपोर्ट नहीं होतीं, लेकिन जो रिपोर्ट हो रही हैं, वे एक ऐसी चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत कर रही हैं, जिसे लेकर देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों को वोट बैंक की चिंता छोड़ कर विचार करना चाहिए।

दुनिया भर में रेडिकल सोच रखने वाले संगठनों की एक थ्योरी चलती है, जिसे “कैच दैम यंग” के नाम से जाना जाता है। यानी किसी के मस्तिष्क में कट्टरपंथ का जहर भरना हो तो, उसे छोटी आयु में ही अपने साथ ले लो, क्योंकि यह वो आयु होती है, जब व्यक्ति मानसिक तौर पर अधिक परिपक्व नहीं होता, लेकिन उसमें जोश जबर्दस्त होता है और बस यही बिना होश वाला जोश कट्टरपंथी संगठनों की तलवार बना हुआ है।

देश भर में चल रहे मदरसे दीनी तालीम के नाम पर बच्चों में जो जहर भर रहे हैं, उसकी परिणति हम इन घटनाओं में देखते हैं। जाने-माने स्कॉलर, नेता और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने उदयपुर की घटना के बाद बहुत बड़ा प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा कि क्या हमारे बच्चों को ईश-निंदा करने वालों का सिर कलम करना सिखाया जा रहा है? यह मुस्लिम कानून कुरान से नहीं आया है। यह किसी इंसान ने लिखा है, जिसमें सिर कलम करने का कानून है और यही कानून बच्चों को मदरसों में पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम लक्षण दिखने पर चिंतित होते हैं, लेकिन गम्भीर बीमारी मानने से इनकार कर देते हैं। उन्होंने कहा कि मदरसों में जो पढ़ाया जा रहा है, उसकी जांच होनी चाहिए।

आरिफ मोहम्मद खान उसी बीमारी की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसे हमारी सरकारें देख कर भी देखना नहीं चाहती हैं। हो सकता है कि देश के नियम कायदे मदरसे चलाने की इजाजत देते हों और इनमें दीनी तालीम की इजाजत भी देते हों, लेकिन इनमें दीनी तालीम के नाम पर बच्चों के मस्तिष्क में किसी तरह का जहर ना भरा जाए, यह देखना भी तो सरकारों का ही दायित्व है।

प्रति वर्ष सरकारें इन मदरसों को हजारों करोड़ रुपए अनुदान में देती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, अकेले केन्द्र सरकार पिछले आठ वर्षों में अल्पसंख्यकों के कल्याण पर 32 हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर चुकी है। राज्य सरकारों का बजट अलग है। चलिए मान लिया कि मुस्लिम समुदाय पर सरकार खर्च कर सकती है, क्योंकि वो भी इसी देश के नागरिक हैं, लेकिन देश के नागरिकों की नई पीढ़ी, सही दिशा में जाए और देश के ही काम आए, यह देखना क्या उसी नागरिक कौम का दायित्व नहीं है, जिस पर अलग से हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, या उन सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है जो यह खर्च कर रही हैं।

मदरसों की जांच के लिए जब-जब भी कोई राज्य सरकार पहल करती है, उसे आलोचना का शिकार होना पड़ता है और यह जताने के प्रयास किए जाते हैं कि जैसे सरकार कोई बहुत गलत काम कर रही है। लेकिन इन्हें इनके हाल पर ही छोड़ देना का परिणाम हम उन अपराधों के रूप में देख और भुगत रहे हैं जो पिछले कुछ समय में सामने आए हैं।

इन अपराधों में पकड़े गए ये वो युवा हैं, जिन्हें यदि सही तालीम मिली होती। देश की मुख्य धारा की शिक्षा मिली होती तो ये देश के काम आ सकते थे। विभिन्न नौकरियों, सेना और अन्य संस्थानों में जा कर देश का और स्वयं का भविष्य संवार सकते थे, लेकिन छोटी उम्र में ही ये उन हाथों में पड़ गए, जहां इनका अब स्वयं का कोई भविष्य नहीं है। इस बारे में इनके परिवारों को तो सोचना ही है, साथ ही उन सरकारों को भी सोचना चाहिए, जो हजारों करोड़ रुपए प्रति वर्ष खर्च कर रही है, लेकिन इनकी शिक्षा और भविष्य को लेकर जो बदलाव लाने चाहिए थे, वे नहीं ला पा रही है।

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