स्वीडन में अब एक महिला ने मांगी कुरान जलाने की अनुमति
स्वीडन में अब एक महिला ने मांगी कुरान जलाने की अनुमति
पिछले दिनों बकरीद पर स्वीडन में मस्जिद के सामने कुरान जलायी गई। इससे मुस्लिम देशों की भौंहे तन गईं। स्वीडन पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए जाने की बातें की जाने लगीं। मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि अब स्वीडन में ही एक 50 वर्षीया स्वीडिश महिला ने पुलिस से जल्दी से जल्दी कुरान जलाने की अनुमति मांगी है। वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में ऐसा करना चाहती है। पुलिस का कहना है कि उसने अनुरोध को खारिज नहीं किया है। आवेदन की समीक्षा के बाद निर्णय लिया जाएगा।
उल्लेखनीय है, बकरीद पर सालवन मोमिक नामक व्यक्ति ने सटॉकहोम सेंट्रल मस्जिद के सामने कुरान को पहले फुटबॉल की तरह पॉंव से उछाला, फिर फाड़ा और लाइटर से आग लगा दी थी। उस समय वहॉं उपस्थित दो सौ से अधिक लोगों ने उसका समर्थन किया था। इस प्रदर्शन के लिए उसने कोर्ट से अनुमति ली थी।
मुस्लिम अतिवादिता से तंग आ चुके हैं लोग
दरअसल स्वीडन के लोग अब मुस्लिम अतिवादिता से तंग आ चुके हैं। वे उस समय को कोसने लगे हैं, जब यूरोप के कई देशों ने ओपन बॉर्डर नीति के अंतर्गत अप्रवासियों और शरणार्थियों को बड़ी संख्या में प्रवेश दिया था, जिनमें स्वीडन भी था। स्वीडन ने शरणार्थियों और अप्रवासियों का दिल खोलकर स्वागत किया था। इनमें बड़ी संख्या मुसलमानों की थी। यूरोपियन देशों की यही दरियादिली अब उनका सिरदर्द बनती जा रही है। स्वीडन की बात करें, तो इसकी कुल जनसंख्या का एक–तिहाई शरणार्थी और अप्रवासी हैं, इनमें भी अधिकतर मुसलमान ही हैं, जो स्वीडिश संस्कृति में रचने बसने के बजाय अपना एक समानांतर समाज बना चुके हैं। वे शरिया अनुसार चलना चाहते हैं।
फिनलैंड की शोधकर्ता क्योस्ति तरवीनैन के फोक्सब्लैड समाचार पत्र में छपे शोध के अनुसार, यदि स्वीडन में मुस्लिम जनसंख्या इसी प्रकार बढ़ती रही, तो 45 वर्षों में स्वीडिश नागरिक अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। तरवीनैन ने एक लेख में लिखा कि 1975 में स्वीडिश संसद ने स्वीडन को एक बहुसांस्कृतिक देश बनाने का निर्णय लिया। उस समय 40 प्रतिशत से अधिक अप्रवासी फिनलैंड के निवासी थे। लेकिन, अब स्थिति बदल गई है। 2019 में 88 प्रतिशत अप्रवासी गैर–पश्चिमी देशों से थे, इनमें 52 प्रतिशत मुस्लिम थे। सभी अप्रवासियों ने स्वयं को स्वीडन के समाज में घुला–मिला लिया, लेकिन मुसलमान स्वीडन के समाज का हिस्सा बनने की बजाय समानांतर समाज बना रहे हैं। इससे देश के आंतरिक हिस्सों में हालात भयावह होते जा रहे हैं। स्वीडिश लोगों की अपनी ही संस्कृति पर खतरा मंडराने लगा है।