इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज़ के 8वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन

इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज़ के 8वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन

इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज़ के 8वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज़ के 8वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन 

डिब्रूगढ़ (असम)। इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज (आईसीसीएस) द्वारा “साझा सतत समृद्धि” विषय पर आयोजित 8वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विश्व एल्डर्स का जमावड़ा, जो 28 जनवरी को शुरू हुआ था, आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की गरिमामयी उपस्थिति के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उपमुख्यमंत्री चौना मेन भी उपस्थित थे।

समापन समारोह की शुरुआत एक यजीदी एल्डर की शुभ प्रार्थना से हुई, जिसमें जननी पृथ्वी, पक्षी, महासागर, सूर्य, चंद्रमा और तारे, जो जीवन के निर्माता हैं, को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

आईसीसीएस, भारत चैप्टर की अध्यक्षा डॉ. शशि बाला ने अतिथियों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों का अभिनंदन किया। सम्मेलन में 33 से अधिक देशों के 125 विदेशी प्रतिनिधियों ने अपने प्राचीन पारंपरिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हुए भाग लिया। सम्मेलन में प्रतिनिधियों (भारतीय और विदेशी) की कुल संख्या 400 थी। सम्मेलन के दौरान उनके आस्था प्रदर्शन के साथ शैक्षणिक सेमिनार, कार्यशालाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्वदेशी समुदायों के नेताओं को अपने-अपने समुदायों के भविष्य के रोडमैप के साथ-साथ विभिन्न गतिविधियों आईसीसीएस पर मंथन करने का अवसर मिला। महाद्वीपीय सम्मेलन, क्षेत्रीय सम्मेलन, मिलन समारोह आदि की योजना भी उसी दौरान बनाई गई।

डिब्रूगढ़ घोषणा को संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले योरूबा जनजाति के एक प्रतिनिधि द्वारा पढ़ा गया। अरुणाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री चौना मेन ने कहा कि भारत के उत्तर पूर्व ने लंबे समय से सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करके रखा है। अरुणाचल प्रदेश सरकार स्वदेशी लोगों की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। “हमने विकास के साथ-साथ संरक्षण के लिए भी बजट बढ़ाया है। स्कूली पाठ्यक्रम का स्थानीयकरण, लोककथाओं और लोकगीतों का डिजिटलीकरण व जनजातीय पुजारियों की प्रणाली को पुनर्जीवित करके सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण अरुणाचल प्रदेश सरकार की प्राथमिकता है। हम जानते हैं कि इंडिजीनस लोगों ने पारिस्थितिकी और पर्यावरण को संरक्षित किया है।” डिप्टी सीएम ने कहा कि, “अरुणाचल प्रदेश सरकार ने संस्कृति और परंपरा संरक्षण के लिए RIWATCH के साथ सहयोग किया है। हमें विविधता, समानता और जनजाति समाज के समावेश को स्वीकार करना होगा। स्कूलों के निर्माण तथा समाज के विभिन्न समावेशी सहयोग संगठनों की संस्कृति के संरक्षण के लिए 100 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, पेमा खांडू ने इस वर्ष “साझा सतत समृद्धि” विषय को चुनने के लिए आईसीसीएस को बधाई दी। उन्होंने कहा इससे समरस समाज का निर्माण होगा। भारत ने विश्व अर्थव्यवस्था में सबसे उज्ज्वल स्थान प्राप्त किया है। अब भारत दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। अरुणाचल प्रदेश में 26 जनजातियाँ हैं। वे कई कई सदियों से सद्भाव में रहती आई हैं। हमारी सदियों पुरानी परंपराएँ हमारे जीवन को आकार व हमें पहचान देती हैं। इंडीजिनस लोग अरुणाचल प्रदेश के जीवित विश्वकोश हैं। इंडिजिनस संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन अरुणाचल प्रदेश सरकार की नीति है। इंडिजिनस परंपरा के सम्मान में ईटानगर के नए  ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे का नाम “डोनी पोलो हवाई अड्डा” रखा गया है। स्थानीय मान्यता के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में डोनी का अर्थ है सूर्य माता और पोलो का अर्थ है चंद्रमा देवता।

वर्तमान में, इंडिजिनस जनजातीय परंपराओं को संरक्षित करने के लिए अरुणाचल प्रदेश में तीन गुरुकुल स्थापित किए गए हैं। इंडिजिनस लोगों के लिए युवा महोत्सव हर साल आयोजित किया जाता है। सामुदायिक बोर्डों और संगठनों को कॉर्पस फंड भी दिया गया है। पुणे में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बीस छात्रों को प्रायोजित किया गया है। 14 अन्य जनजातियों का दस्तावेज़ीकरण चल रहा है। 3000 स्वधर्मी पुजारियों को मासिक मानदेय दिया जा रहा है। पंजीकृत पुजारियों को सरकारी पहचान पत्र भी दिये जा रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश को पहले ही 12 उत्पादों के लिए जीआई टैग मिल चुके हैं। 16 अन्य उत्पादों के लिए आवेदन भी दिए जा रहे हैं। रोइंग में RIWATCH के प्रयास की खांडू ने सराहना की।

दत्तात्रेय होसबाले (सरकार्यवाह, आरएसएस) ने कहा, ‘यह एक वैश्विक आंदोलन है। जहां तक इसके आयाम और कवरेज का प्रश्न है, इंडिजिनस प्राचीन परंपराएं फल-फूल रही हैं। सम्मेलन के विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, इसमें प्रमुख शब्द ‘समृद्धि’ है। उन्होंने कहा, प्रश्न यह है कि समृद्धि को लंबे समय तक कैसे कायम रखा जाए। समृद्धि धरती माता के शोषण की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। सरकार्यवाह होसबाले ने समुद्र मंथन का उदाहरण देते हुए कहा कि अत्यंत कठिन मंथन के बाद उसमें से लक्ष्मी अर्थात समृद्धि निकली। अतः समृद्धि के लिए मंथन आवश्यक है। हमने यहां सम्मेलन में चार दिनों तक मंथन किया, जिससे “अमृत” निकला। “शंख” समृद्धि का भाई है। शंख विशेष रूप से पूजा करते समय बजाया जाता था। हमारे प्राचीन बुजुर्गों ने बहुत ही सौम्य तरीके से संवाद किया है, कहानियों के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि समृद्धि टिकाऊ और न्यायसंगत होनी चाहिए। आध्यात्मिकता प्राचीन परंपराओं का एक सामान्य पहलू है। हर प्राणी में देवत्व की उपस्थिति देखी जाती है। प्रकृति हर किसी को पर्याप्त प्रदान करती है। अब इस दिव्यता का सरंक्षण करना हमारा दायित्व है। आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति और परंपरा की आत्मा है। सभी संस्कृतियों में समानताएं हैं। प्राचीन इंडिजिनस परंपराएं पृथ्वी पर एकमात्र ऐसे परंपराएँ हैं, जिन्होंने स्त्री के देवत्व को मान्यता दी है। ये परंपराएं पारिवारिक मूल्यों और सामान्य जीवन शैली में स्थायी टिकाऊ जीवन पर जोर देती हैं। सतत उपभोग के माध्यम से ही सतत विकास सुनिश्चित किया जा सकता है। स्थिरता के लिए पूरकता आवश्यक है। समृद्धि को समान रूप से साझा करना होगा। ऐसे प्राचीन ज्ञान से संचालित होने वाले प्रत्येक समाज में कमाई और वितरण का भी मौलिक दर्शन रहा है।

सरकार्यवाह ने सम्मेलन के लिए तीन अनुवर्ती कार्रवाई बिंदुओं पर जोर दिया। पहला, इंडिजिनस परंपरा और संस्कृति को सजावटी संग्रहालयों में संरक्षित करने के लिए नहीं बनाया गया है। ये प्राचीन ज्ञान और विश्वास प्रणालियाँ पृथ्वी पर निरंतर जीवित परंपराएँ हैं। इन्हें समाज व्यवस्था की मुख्यधारा में होना चाहिए न कि हाशिये पर धकेल दिया जाना चाहिए। दूसरा, व्यक्तिगत और सामाजिक जीवनशैली पर हजारों वर्षों से इंडिजिनस संस्कृतियों का प्रयोग किया गया है, इस प्रकार यह निश्चित है कि धरती माता को बचाने का यही एकमात्र तरीका है। बेहतर और टिकाऊ मानवता की रक्षा के लिए इनकी उपस्थिति आवश्यक है। परीक्षणित ज्ञान को इन मूल्यों के आधार पर अगली पीढ़ी तक पारित किया जाना चाहिए। तीसरा, प्रगति और भौतिक विकास को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक समुदाय के लिए स्वयं की क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

होसबाले ने आगे कहा, “आध्यात्मिकता का अर्थ है कि सभी एक हैं, और हर जीवित या निर्जीव चीज में दिव्यता है। हमारी सभी प्राचीन परंपराएं हर चीज में दिव्यता देखती हैं, और हम एक साथ रहने का जीवन स्वीकार करते हैं और अभ्यास करते हैं। भारत में, हम कहते हैं ‘सतहस्ता समाहार, सहस्त्र हस्ता बिका’, यानी सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से बांटो। जो भी आप कमाते हैं, आपको उसका दस गुना अधिक वितरित करने की आवश्यकता है। हमें वितरण के लिए उत्पादन करना होगा और बांटकर जीना होगा। यही इस सम्मेलन का संदेश है।”

सम्मेलन ने तीन सूत्रों के साथ ‘डिब्रूगढ़ घोषणा’ नामक एक प्रस्ताव अपनाया – परंपराओं को पुनर्जीवित करना, पारिस्थितिक ज्ञान और सहयोगात्मक शासन। इस प्रकार 8वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और विश्व एल्डर्स की सभा ने प्राचीन परंपराओं, पारिस्थितिक स्थिरता और सहयोगात्मक शासन के संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए विविध संस्कृतियों को एक साथ आने के लिए एक मंच प्रदान किया।

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